सोमवार, 16 जनवरी 2012

अनुगूँज

आवाज़े
कई शक्ल बना कर आती हैं .


कभी फुसफुसाती ,
कभी गूंजती आवाज़ ...
कुछ ठहरी ,
कुछ बहती आवाज़ .
कुछ शोर सी , 
कमजोर सी .



सारी आवाज़े घूमती है जेहन में
टकराती है
टटोलती हैं
स्वीकारती हैं कभी
नकारती हैं
मेरा वजूद ...


कुछ पार निकल जाती हैं
कुछ सहम कर
वहीँ रह जाती हैं .
कभी चुप्पी बन कर ,
कभी आंसू बन कर ,
बस बह जाती हैं .


             राजलक्ष्मी शर्मा.  

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