सोमवार, 16 जनवरी 2012

आवाज़ हो गई है मेरी आज बेसदा...

हमदर्दे ज़िन्दगी वो मेरा हो गया जुदा।
आवाज़ हो गई है मेरी आज बेसदा,


टूटे हुये नसीब का साथी नहीं कोई,
सीनाज़नों को एक मिला यार मैक़दा।


लम्हा है ये तमाम का नरमी से काम ले,
हो जाउँगा मैं अबकी दफा यार बेसदा।


अब रोशनी का राह में नामोनिशाँ नहीं,
अंधे सफर पे छोड़ हुआ हमसफर विदा।


आगोश में तो आ मेरे हर ग़म फना करूँ,
खामोश बेबसी से मेरी कह रही रिदा।


हर ख़ासो आम के तू ही लाज़िम गले मिले,
भाई है मौत हमको तेरी बस यही अदा।


मैं मुझको ढूंढता फिरूँ ताउम्र न मिलूँ,
कैसा अजीब हूँ मैं रहूँ खुद से गुमशुदा.


कश्ती में है सुराख तो पतवार भी है गुम,
लेकिन खुदा तो साथ है चल चल रे नाखुदा.

ग़म से बिछड़ गया अगर कैसे जियूँगा मैं, 
'ग़मगीन' मैं तो सोचके रहता हूँ ग़मज़दा



                                      - इमरान .


बेसदाः खामोश
सीनाज़नः सोगवार
रिदाः मिट्टी

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