मंगलवार, 17 जनवरी 2012

चिंगारी

ये वादा करो खुद से ,
अपनी आवाज़ की चिंगारी 
तुम बुझने नहीं दोगे ...


ये छोटी सी चिंगारी 
बड़े से ख्वाब बुनती है !
लगभग रोज़ लडती है ...
और खुद को बचाती है 
बमुश्किल राख़ बनने से .



अभी वो आंच है इस में ...
अंधेरों को बुझा देगी ,
मशालों को जला देगी ...
ज़रा तुम साथ दो इसका 
तो सदियों से जमी 
रातों की बुनियादें हिला देगी .


तुम्हारे हाथ में है 
इस को सुलगाना ... 
हवा देना .
या फिर इस को भी 
मुर्दा राख के नीचे दबा देना ,
बुझा देना .


मगर 
ये भूलना मत 
एक चिंगारी वो जरिया है ...
जिस से घुप्प गहरी रात 
के काले अंधेरों में 
उजाला बोया जाता है ...
सुबह की धूप आने तक 
सिहरती , कंपकंपाती , 
सर्दियों को ढोया जाता है .


ये ही आवाज़ 
तुम को 
मुद्दतों तक याद रक्खेगी 
कभी जब तुम नहीं होगे .
तो ...ये वादा करो खुद से 
अपनी आवाज़ की चिंगारी 
तुम बुझने नहीं दोगे .


                - मीता .




चिरंतन - 'आवाजें / Unsaid voices.'





1 टिप्पणी:

Nirantar ने कहा…

aisee himmat honsle dene waale saath ho to chingaaree kabhee bujh nahee saktee
sashakt rachnaa

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