सोमवार, 9 जनवरी 2012

उम्मीदें...

अपने खाली दामन में भरके बेताबी आया है,
उम्मीदों को लेकर दर पे कोई सवाली आया है।


झुलसे जलते सहराओं में उम्मीदों के साये हैं,
मिस्मारी के आलम में लम्हा तामीरी आया है।


मेरे गुलशन की अब देखो चटक रहीं है कली कली,
बनके मौसम उम्मीदों की नई कहानी आया है।


पेड़ों पौधों झुके रहो तुम कहीं न जड़ से गिर जाओ,
अकड़े तुम न यूँ ही रहो झोंका तूफानी आया है।


करती है ये फ़ज़ा भी देखो मेरे नाम की सरगोशी,
उम्मीदों के थाल सजाकर वो हरजाई आया है।
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सवाली- मांगने वाला               
सहरा- रेगिस्तान
मिस्मारी- विनाशकारी
तामीरी- निर्माणकारी

सरगोशी- खुसर फुसर
फजा- वातावरण

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