मंगलवार, 17 जनवरी 2012

आवाज...


चुप्पी, जब तूओढती है 
मेरी सांसें तोड़ती है 
ख़ामोशी को गले लगाकर 
सन्नाटों को सखी बनाकार 
तन्हा मुझकोछोडती है ...
चुप्पी जबतू ओढती है 

चुप्पी, जब तू , ओढती है 
कितने सवाल ,छोडती है
मौन का निर्मम जाल बना कर  
हर पल को चिरकाल बना कर 
निशब्द, निरुत्तर, छोडती है ...
चुप्पी जब, तू ओढती है 

चुप्पी, जब तू, ओढती है 
मायूसी की तरफ मोड़ती है 
दिन के सारे रंग चुरा कर
उमीदों का संग छुड़ा कर
बेबस ,रेंगता छोडती है ...
चुप्पी जब, तू ओढती है 

चुप्पी, जब तू , ओढती है 
हर धड़कन, दर्द जोड़ती है 
तिनका तिनका, मुझको जला कर 
कतरा कतरा, राख उड़ा कर 
अस्तित्वहीन, छोडती है ...
चुप्पी जब, तू ओढती है .


                        - स्कन्द .

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