अपने पीले लिबास में
मुझे धीमे से थमाने
छोटा सा पीला रुमाल
जो माँ ने सिया था
सफ़ेद कपडे को
हल्दी से रंग के
देवताओं के सिंहासन
पे शोभित पीताम्बर
और चूल्हे से उठती
मीठे चावल की खुशबू
जब डब्बे के रेजगारी की
आवाज मंद हो चली थी
और दिल में स्नेह
बाहर छलक चला था
ऋतुराज का उल्लास
चेहरे पे दमका था
गोद में उठा मुझे
सरस्वती वंदना गाई थी
और दिल की व्यथा
आशा में डुबाई थी
अब वसंत का रंग
कुछ मैला सा हो गया है
पीले सोने की चमक से
धूमिल सा हो गया है
मिलावट के बाज़ार से
खशबू उड़ गयी है
सरस्वती भी अब
सुप्त सी हो गयी है
पर अब मुझे खुद ही
बसंत को बुलाना होगा
अपने बच्चों को उसका
जादू दिखाना होगा
वस्त्र आभूषण से परे
छोटी बातों में ख़ुशी
समेटने का वो कौशल
फिर से सिखाना होगा
तभी फिर वसंत आयेगा
और हमें फिर से
रंग और खुशबू से
सराबोर कर जायेगा
- साधना .
- साधना .
2 टिप्पणियां:
अवश्य आएगा वसन्त...
माँ सरस्वती वरदान देंगी ज़रूर...
सुन्दर प्रस्तुति...
Thank you so much, Vidya.woh zaroor aayengi
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