समय की कसौटी पर खुद को आजमाया
अब क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया
उम्र के इस पड़ाव पर आज यही विचार आया
'वही'संजोता सब कुछ जिसने ये जहाँ बनाया
.............क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया
हाँ कुछ पल कठिन थे ,कुछ देर से गुजरे
निशानियाँ बची है जब 'उसने ' आजमाया
.............क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया
गर आँचल के कोर में बंधे खुशियों के पल
वैसा ही लिया जीवन जैसा 'उसने' थमाया
...........क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया
बहुत ही ईमानदारी से 'वो' करता है हिसाब
जो दिया जिंदगी को बिलकुल वही लौटाया
.......अब क्या हिसाब करूँ ये खोया वो पाया
राजलक्ष्मी शर्मा.
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