सोमवार, 19 मार्च 2012

सच का अस्तित्व ...

 
वो दो थे 
लोग ये जानते है                                                    
उन्होंने प्रेमविवाह किया ,
दिखता भी तो वही है
'पति' को दफ्तर भेजते समय
वो जब यंत्रचलित सा हाथ हिलाती है
और
मुस्कुराती है ,
कोई उसे नहीं पढ़ पाता 
क्या चल रहा है ?


लोगों ने उसके बाद
उसे भी कॉलेज जाते देखा है ,
कहीं कोई गड़बड़ नहीं
कोई ऊँची आवाज़ नहीं ...


पर पलंग के दो सिरों में बैठे
अपने अपने लैपटॉप में उलझे ,
बीच में पसरे बासीपन को
virtual world की
ताजगी में बदलने की कोशिश करते ,
अपने जैसे 'वजूद ' तलाशते लोगों के बीच ...
दूसरों के दर्द बांटते
खुशियों में साझेदारी करते ,
कुछ देर के लिए सही
इंधन जुटा लेते हैं
बढ़ा लेते है अपनी updates
सम्हाल लेते हैं अपने गिरते 'harmone'
के स्तर को ...
और तैयार हो जाते है
जिंदगी से जूझने के लिए .


               राजलक्ष्मी शर्मा. 

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