लकीरों में बांध कर
खुद को
आदम हव्वा के जायों ने
बही खाता बना दिया.
कहीं हाशिये हैं खाली खाली,
कहीं नफे की कालिख,
कहीं नुकसान की लाली
कभी जोड़ना, कभी घटाना
कभी लिखना, कभी मिटाना.
फिर भी देखो
जब तब जेबें
रहती हैं बिलकुल खाली.
सब कुछ
है यहाँ नक़द अदा करना.
उधर नहीं मिल पायेगा.
कर्मों का लेखा जोखा
कोई साथ नहीं ले जायेगा.
कोई हुंडी नहीं मिलेगी
जिस को ऊपर भुनायेगा.
फिर क्यों इस नरक को चुनते हैं
इच्छाओं के जाल बुनते हैं.
उलझ लिपट भ्रमजालों से
दलालों की क्यों सुनते हैं.
अस्तित्व गहरा समंदर है,
जो अपने ही अन्दर है.
जो भीतर उतर जायेगा,
वो ही मोती पायेगा.
- स्कन्द
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