अबीर उड़ाते, रंग बिखेरते, गुब्बारों की मार से बचते-बचाते और अपना मौक़ा ढूंढते, अक्सर मन में ये ख्याल आया करता था कि अज़ब त्यौहार है होली भी कि इतने रंगों की भरमार के बाद भी सब को कर जाता है ''एकरंग" ...
जी हाँ, होली का रंग सिर्फ वो नहीं जो कपड़ों और मुंह पर दिखाई पड़ता है... होली का असली रंग वो है जो क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या पुरुष, क्या स्त्री ... सब के मन में तरंग भर देता है, जोश भर देता है... उस तरंग, उस जोश-जूनून का रंग सब पर एक जैसा चढ़ता है...
चिरंतन के इस होली अंक में अनेक रंगों में रंगी हुई कवितायें हैं जो रस की अलग अलग सी चाशनी में पगी हुई हैं...
फिर देर किस बात की ? होली है !
- पुष्पेन्द्र वीर साहिल .
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तुम्हारे अहसास से अछूती होती
तो
सचमुच मै सफ़ेद होती ...
किसी ख़ाली केनवास की तरह .
कई रंग मचलते हैं
जब तुम गुनगुनाते हो ,
मंद पड़ते हैं
जब एक
अनकहा अबोला खिंच जाता है ...
कुछ तो कहो
प्रियतम
तुम्हारे इशारे पर
सूरज का लाल रंग देह में उछलता है .
तुम्हारे ख्यालों
के नीले पीले हरे से मेरा एकांत
महकता है .
तुम्हारी
एक हलकी गुलाबी मुस्कुराहट
के लिए नैन रास्ता ताकते हैं .
कभी अनमने रहो
तो
अन्तरमन से भूरे काले रंग झांकते हैं .
उस विराट समंदर का
काही और गहरा नीला रंग
याद दिलाते है उस गंभीरता की
जिसमे मै सिमट कर इस भीड़ में
खुद को महफूज़ समझती हूँ .
सारे रंग
मुझे तुम्हारी ही याद दिलाते हैं
तुम्हे पता है ना..
मेरे सारे रंग तुमसे हैं ,
तुम न होते
सचमुच मै सफ़ेद होती
किसी ख़ाली केनवास की तरह .
- रश्मि प्रिया
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सियाह अँधेरे में
दूर .... किसी रोशनी से तुम ,
उजालों का लिबास पहने
बाहें फैलाये ...
तुम धूप के रंग जैसे .
तेज़ गर्म लू के थपेड़ों में
ठण्डे झोंके से तुम
माथा सहलाते ...
हवा के रंग जैसे .
सूखे पपड़ाये होंठों पर
अमृत से बरसते तुम ...
रूह तक उतरते
तुम पानी के रंग जैसे .
यूँ
दीखते तो नहीं हैं तुम्हारे रंग !!
पर महसूस किया है तुम्हें
हर कदम ,
हर मोड़ पर ,
हमेशा अपने साथ ...
अपने संग .
- मीता .
रंग बिरंगी दिल की वादी ,
धड़कन मेरी हैं उन्मादी .
जल तरंग से भीगी जाऊं ,
भीगे तन को कहाँ छुपाऊं .
मेरे मन की नेह दीवारें
झेलें रंगों की बौछारें .
तन रंग डाला , मन रंग डाला .
उर में भर दी कैसी ज्वाला !!
घूमूं पग पग मैं फरियादी
पिया ने ऐसी आग लगा दी .
रंग बिरंगी दिल की वादी ,
धड़कन मेरी हैं उन्मादी .
- इमरान .
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माना कि हर साल
आती है होली
फिर भी इंतज़ार है
रंग देने और रंग जाने का,
सिर्फ तुमसे ही
कि हमारे बीच की नदी
के उस छोर से फेंकीं
सुर्ख टेसू सी यादें
बहती सी मुझे छू जायेंगी
तब होगी होली
जब साँझ ढले
चांदनी का रंग
हमारे बुने ख्वाबों को
सहलाता सा चढ़ जायेगा
तब होगी होली
तुम्हें सौंपे गए उस
दिल की पहली धड़कन के
अनाम रिश्ते का रंग
जिस दिन हम बूझ पायेंगे
तब होगी होली
तुम्हारे स्पर्श से पल्लवित
रिमझिम सावन सी नेह-वृष्टि
हरित मन में फिर से
जीने की आस जगाएगी
तब होगी होली
या फिर
इस एक दिन में ही
क्यूँ ढूँढें रंगों की होली
तुम्हारे रंग में रंग के
मैं तो सदियों से ही
तुम्हारी ही हो-ली
- साधना .
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आठवां रंग तुम हो जानां
आठवां रंग तुम हो जानां
मेरी डायरी के सफ्हों पर
तेरे रंग से नज़्म लिखी है
कोई पढ़े या सुने कोई भी
वो बिलकुल तेरे जैसा लगता है
मुझको तो इस कायनात में
हर ज़र्रा तुझसा लगता है
सुबह नहाती है जब
गंगा में
हरी दूब के मैदानों पर
तेरे रंग का छींटा पड़ता है
ओस चमक उठती है बिल्लौरी
और धरती पर सूरज उगता है
दिन भर नीले आसमान पर
तेरे रंग का कब्ज़ा रहता है
शामों को तेरे हाथ मलमली
एक गुलाबी मौसम
आसमान में भर जाते हैं
तुझे देख लें एक नज़र तो
बाग़ के सारे गुल बूटे
तेरे रंग में खिल जाते हैं
तुझे देख कर ही, ऐ माहताबी
ज्वार समंदर में आते हैं
कान्हा भी तेरे रंग का दिखता
मीरा भी तुझ रंग दीवानी
मैं भी तो तुझसे रंगा हूँ
तुम केसरिया मैं धानी...
सात रंग हैं इन्द्रधनुष के
आठवां रंग...
वो तुम हो जानां...
- देव .
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ओ जादूगर रंगरेजन .
ओ जादूगर रंगरेजन
कान्हा की प्रीत के रंग मा
मैं रंग गयी ऐसो रंग
पहन उसे इठलाऊँ मैं
खिल जाये मोरी चितवन
ओ जादूगर रंगरेजन
रंग देजो मोरी ऐसी पैराहन
केसरिया हो उसमें ऐसा
मीरा का छलकता दीवानापन
लाल हो उसमें ऐसा सुरख
महका दे जो राधा की अगन
एक छींट हरी सी, पीली सी
जैसे धरती का ढकती हो
सरसों की महकती चादर तन
सरसों की महकती चादर तन
पहन उसे इतराऊँ मैं
राधा की चूड़ी की खन-खन
हाँ, एक गुलाबी लहरिया भी
जैसे शरमा जाये राधा
सुन नाम पिया का मोहन
ओ जादूगर रंगरेजन
रंग देजो मोरी ऐसी पैराहन
ओ जादूगर रंगरेजन
गेसू मोरे हैं कारे घन
भर दो चुनरी में ऐसो रंग
लहराऊँ उसे जब वन-उपवन
लगे जैसे मयूरों का नर्तन
हो देख, सघन मेघों को, मगन
ओ जादूगर रंगरेजन
रंग देजो मोरी ऐसी पैराहन
ओ जादूगर रंगरेजन
छेड़ो रंगों का सम्मोहन
सुध-बुध बिसरा जाये मोरी
हो प्रीत विवश मैं बन जाऊं
अपने पिया जी की जोगन
ओ जादूगर रंगरेजन
रंग देजो मोरी ऐसी पैराहन
ओ जादूगर रंगरेजन
किस रंग मेरी प्रीत रंगी
ये तोसे का बतलाऊँ
श्याम नाम जप ऐसी खोई
आपहि श्यामल हो जाऊं
ओ जादूगर रंगरेजन
रंग देजो मोरी ऐसी पैराहन
ओ जादूगर रंगरेजन
रंगों के इस मायजाल में
तोसे काहे लागी लगन
खुद श्यामल हो कर मैं समझी
तू ही कान्हा, तू ही मोहन
ओ जादूगर रंगरेजन
रंग देजो मोरी ऐसी पैराहन
- नंदिता .
_________________________________________
बावरा बसंती मन
बावरा बसंती मन
चेतना से टकराती स्मृतियाँ
कितने रंगों से भिगोया
नहीं भूलती वो गलियां
वो बजते नगाड़े
गाते फाग की टोलियाँ .
एक ही शब्द सुना 'रंग'
और मन कहाँ कहाँ से गुजर आया .
- रश्मि प्रिया .
__________________________________________
कोरा कागज़ .
रंगों के इस इंद्रजाल में
मन का कागज़ कोरा है .
धुल जाते हैं रंग सभी .
या फीके पड़ जाते हैं .
चढ़ कर जो फिर उतरे ना
ऐसा कोई रंग कहाँ !!
रंग बदलती दुनिया में
कब रंग बदलते रंग नहीं ?
फिर जब ये ही होना है ,
तो कोरा ही रहने दो ;
सतरंगे जीवन धारे में
बिना रंगे ...
बहने दो .
जब तक कागज़ कोरा है
रंगों की गुंजाइश है .
भर जाएगा
फिर तो शायद
मटमैला हो जाएगा .
ऐसा कोई मलाल नहीं .
कोरा रह जाए कागज़
इतना भी बुरा ख़याल नहीं .
- मीता .
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कोरा कागज़ .
रंगों के इस इंद्रजाल में
मन का कागज़ कोरा है .
धुल जाते हैं रंग सभी .
या फीके पड़ जाते हैं .
चढ़ कर जो फिर उतरे ना
ऐसा कोई रंग कहाँ !!
रंग बदलती दुनिया में
कब रंग बदलते रंग नहीं ?
फिर जब ये ही होना है ,
तो कोरा ही रहने दो ;
सतरंगे जीवन धारे में
बिना रंगे ...
बहने दो .
जब तक कागज़ कोरा है
रंगों की गुंजाइश है .
भर जाएगा
फिर तो शायद
मटमैला हो जाएगा .
ऐसा कोई मलाल नहीं .
कोरा रह जाए कागज़
इतना भी बुरा ख़याल नहीं .
- मीता .
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जीवन का हर दिन होली है .
जीवन का हर दिन होली है
कहीं एक नन्हा सा बिरवा उपज रहा है, धीरे-धीरे
सोख रहा है थोड़ा पानी, थोड़ी मिट्टी, धीरे-धीरे
बड़ा एक दिन होगा, उसकी शाखों पर होंगे पत्ते
भर देगा हरियाली मेरी आँखों में, धीरे-धीरे
जीवन का हर दिन होली है
जिसकी चादर में सिमटे, ये सूरज, तारे हैं सारे
जिसके आँचल में आ सिमटे बादल, अपना सब कुछ वारे
जिसका विस्तार, निमंत्रण पाखी को देता है, उड़ जा रे
उस नीले अम्बर का नीलापन, मेरी आँखों के धारे
जीवन का हर दिन होली है
दिनभर जलकर, थककर, दिनकर का स्वर्णिम-ओज हुआ खाली
ठंडी बयार के मंद - मंद झोंकों ने थपकी दे डाली
मानस-मन की सारी पीड़ा, ज्यों अपने अंतस में पाली
ढलती शामों ने आकर मेरी आँखों में भर दी लाली
जीवन का हर दिन होली है
पीली-राखी, पीली-हल्दी, पीली सरसों, पीली चादर
सिन्दूर सुहागन मांगों में, धानी-धानी लहरी चूनर
प्रेम-पिपासु नयनों में बिखरा-बिखरा दूध और केसर
रंगों का उत्सव मनता है पल-पल में देखो जीवन भर
जीवन का हर दिन होली है .
- पुष्पेन्द्र वीर साहिल .
- पुष्पेन्द्र वीर साहिल .
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होली के इस त्यौहार के हर अंदाज़ को बयान करती नजीर अकबराबादी की ये नज़्म आपके लिए पेश है इस बार की "मास्टर्स प्रस्तुति'' में -
देख बहारें होली की .
जब फागुन रंग झमकते हों, तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों, तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों, तब देख बहारें होली की
ख़ुम शीशा-ए-जाम छलकते हों, तब देख बहारें होली की
महबूब नशे में छकते हों, तब देख बहारें होली की
हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हों गुलरू रंग भरे
कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे
दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे
कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे
कुछ घुंगरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की
गुलज़ार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश-रंग अज़ब गुलकारी हो
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की
और एक तरफ़ दिल लेने को, महबूब भवइयों के लड़के
हर आन घड़ी गत फिरते हों, कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के, कुछ होली गावें अड़ अड़ के
कुछ लचके शोख़ कमर पतली, कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों, तब देख बहारें होली की
- नजीर अकबराबादी .
______________________________________
आज रंग है .
होली के त्यौहार के उपलक्ष्य में अमीर खुसरो जी का ये कलाम आबिदा परवीन जी की रूहानी आवाज़ में आप के लिए . होली आप सब को रंगों और खुशियों से सराबोर करे इस कामना के साथ ...
6 टिप्पणियां:
बहुत अच्छे !! आप सबको होली की बधाईयाँ !!
Thank you Giribala , for always reading and encouraging us.Happy holi to you as well.
They say that art takes its "colours"from the mind...and wid such creative minds what else could we expect but for this rainbow of the most wonderful hues!!!...it is sucha fortunate co-incidence that for this colourful issue we have exactly seven creative heads together...the seven essentials to the creation of this "VIBGYOR"...:)...The mention of colours and rainbows brings to mind these most amazing lines by Meena Kumari ji,
"धुनकी हुई कुज़ह के फैले फैले खूबसूरत रंग
इन रंगों का सिमटना,
फैलना और गुम हो जाना
क्या इस बात की शहादत नहीं देता
कि गम-ओ-हसरत लाफ़ानी हैं
ख्वाह वह
मुसर्रत की लम्हा हो
या
गम-ओ-अंदोह की जागुन्दाज़ साअत"
This issue is not just a HOLI issue but each and everyyyy composition is actually as Pushpendra ji rightly said,prem and colours ki chaashni mein doobaaa hua...the compositions are deep and leave the mind and soul drenched and satiated...this issue right from the word go to the end is a soulful ride...an unforgettable experience where we dont just get to seeing but feeling colours...n where abstraction too is imparted a shade unseen n unheard of and only possible here at "CHIRANTAN"... :) ...i'll end my soliloquy,lol with a feel of "Phagun"...
""कौन रंग फगुन रंगे,रंगता कौन बसंत
प्रेम रंग फागुन रंगे,प्रीत कुसुम्भ बसंत
रोम-रोम केसर घुली,चन्दन महके अंग
कब जाने कब धो गया फागुन सारे रंग
पलट-पलट मौसम तके,भौचक निखरे धूप
रह-रहकर चितवे हवा,यह फागुन के रूप
होंठों होंठों चुप्पियाँ,आँखों-आँखों बात
गुलमोहर के ख्वाब में,सड़क हंसी कल रात
भूली बिसरी याद के कच्चे पक्के रंग
देर तलक गाते रहे कुछ फागुन के संग"
""कौन रंग फगुन रंगे,रंगता कौन बसंत
प्रेम रंग फागुन रंगे,प्रीत कुसुम्भ बसंत
रोम-रोम केसर घुली,चन्दन महके अंग
कब जाने कब धो गया फागुन सारे रंग
पलट-पलट मौसम तके,भौचक निखरे धूप
रह-रहकर चितवे हवा,यह फागुन के रूप
होंठों होंठों चुप्पियाँ,आँखों-आँखों बात
गुलमोहर के ख्वाब में,सड़क हंसी कल रात
भूली बिसरी याद के कच्चे पक्के रंग
देर तलक गाते रहे कुछ फागुन के संग"
-abridged poetry by Shri Dinesh Shukle
May all of you find the colours to brighten your lives this HOLI...:)
होली की हार्दिक शुभकामनाये ................
बहूत ही खुबसूरत रंगीन धागों से सजाया है यह रंगों का चमन ..
ना पुष्प जुदा ना जुदा रश्मी इसमें .. मीत की प्रीत है ख्वाबों का चमन ...
करे इम्र साधू साधना , देवों सा है बसेरा ...नादान नहीं है यह नंदिता चमन .........
प्रीत इतनी बस दिल की कहू "लीन" हो गया मदमस्त यह मन .. मदमस्त यह मन ...........
उपर की पाक्न्तियों में मेने सभी को पिरोया .. जहाँ लीना जी के भी छु लेने वाले भावों को सलाम ..........
रंगों की परिभाषाये अलग अलग है पर अंत सुंदर है सजीव है व्याप्त है चहु और है.....
मेरे कुछ रंग आप को समर्पित है ................
रंग
शब्द सुनते ही ..
सतरंगी सा इन्द्रधनुष
आँखों में छा जाता है .....
उन आँखों का
क्या करू ..
जिसने रंग देखा ही नहीं ...........
रंग
थाल देखते ही ...
मन मचल सा उठता
जी ललचा जाता है .....
उन हाथों का
क्या करू ..
जिसने बचपन बोझ उठाया .........
रंग
बड़े ही अजीब है
भरमाते है
उम्मीद उठा जाते है ...
उन उमीदों
का क्या करू ..
दहेज़ में ही टूट जाती है .....
रंग
रंग अवसादों का
बड़े फसादों का ...
तकसीम वजूद करते है ....
उन वाजूदों
का क्या करू .
सरहद के पर भी एक है ..........
रंग
काश सही में रंगीन होता
एक सेहर एक जान
बचपन में घुला होता
जुद्दा न कोई वतन होता ...
न टूटता न बिखरता
बस मदमस्त
हसीन होता ......
रंग ....
रंग ....
रंग ................
ना लाल...
ना पीला ...
ना नीला ...
ना काला ...
ना हरा ...
ना सफ़ेद....
बस रंग
रंगीन होता ............
ना तू होता
ना में होता
बस हम होता ..........
रंग ........................
विनय .....०७/०३/१२ १:४८ दोपहर ...........
Leena thank you for reading and appreciating . Beautiful , beautiful poems you have shared and as always found out a new angle to our effort . VIBJYOR .... loved it !!
Thank you very much Vinay ji for your poem -
ना तू होता....
ना में होता.....
बस हम होता ..........
रंग ........................
Loved these lines .
Very meaningful !!
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