सोमवार, 2 अप्रैल 2012

ग़ज़ल

मुख़्तसर को मुख़्तसर करते हुए                    
दायरे में सब सफ़र करते हुए .  


हम हुआ ही चाहते थे माहताब 
इक इबादत रात भर करते हुए .


तय किया चेहरों से आगे का सफ़र 
आइनों को दरगुज़र करते हुए .


अपनी मंजिल तक पहुंचना है मुझे 
हर दवा को बेअसर करते हुए .


आ गए अपने ही दिल के आस-पास 
हम तेरी जानिब सफ़र करते हुए .


यूँ नहीं पढ़ते किताबे-ज़िन्दगी 
आंसुओं से तर-ब-तर करते हुए . 


हो गए ना-मातबर हम एक दिन 
हर किसी को मातबर करते हुए .


                           - नोमान शौक़ 

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