गोमुख के हिमाच्छादित
उत्तुंग शिखर पर
समाधिस्थ बैठे योगी
तुम तक पहुंचना अब
कठिन ही नहीं ,
असंभव -
हो गया है .
घाटियों में स्थित मेरे दिव्य-
भव्य- उन्नत प्रेम
और मुक्त करती
कविताओं के अर्घ्य
को स्वीकार करो .
द्रौपदी की तरह
इस यात्रा में पहले
मुझे ही गिरना होगा
पर तुमसे मैंने
'इतना पाया'
है , कि मृत्यु मलाल नहीं
उत्सव हो गयी है .
स्वीकारो मेरी
'अंतिम कविता'
और कभी न समाप्त होने वाला
'प्रेम' .
- दिनेश द्विवेदी .
उत्तुंग शिखर पर
समाधिस्थ बैठे योगी
तुम तक पहुंचना अब
कठिन ही नहीं ,
असंभव -
हो गया है .
घाटियों में स्थित मेरे दिव्य-
भव्य- उन्नत प्रेम
और मुक्त करती
कविताओं के अर्घ्य
को स्वीकार करो .
द्रौपदी की तरह
इस यात्रा में पहले
मुझे ही गिरना होगा
पर तुमसे मैंने
'इतना पाया'
है , कि मृत्यु मलाल नहीं
उत्सव हो गयी है .
स्वीकारो मेरी
'अंतिम कविता'
और कभी न समाप्त होने वाला
'प्रेम' .
- दिनेश द्विवेदी .
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