सपने के बीजों को
अनुभव की धूप में सुखाया जाता है
तब ही एक पूर्ण शुष्क बीज से
सृजन का पल्लव फूटता है
दुनिया की कुटी पिसी प्रथाओं में
और रुखी सूखी परम्पराओं में
जब कोई आशा का जल सीचता है
तब ही एक शुष्क बीज से
सृजन का पल्लव फूटता है
अद्भुत होता है सृजन का क्षण
इक छोटा सा बीज
और ताप की जकड़न
पानी से तृप्त हो कोरों को तोड़ता है
तब ही एक शुष्क बीज से
सृजन का पल्लव फूटता है
- राजलक्ष्मी शर्मा.
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