
मेरे ही साथ जायेंगी ये मेरी ख्वाहिशें.
कोई सुकून का मुझे लम्हा न दे सकी,
कब तक यूँ ही सतायेंगी ये मेरी ख्वाहिशें.
मेरी तरह से ख्वाहिशें खाना-बदोश हैं,
मंजिल पे कैसे लाएँगी ये मेरी ख्वाहिशें.
दिल को कई दिनों से कोई आरज़ू नहीं,
फिर से कहर मचाएंगी ये मेरी ख्वाहिशें.
जिंदा हैं ख्वाहिशें तो क़दम भी रुके नहीं,
इतना ही काम आएँगी ये मेरी ख्वाहिशें.
- इमरान .
1 टिप्पणी:
तकमील ही न पाएँगी ये मेरी ख्वाहिशें,
मेरे ही साथ जायेंगी ये मेरी ख्वाहिशें... bahut khoob Imran!! Behtareen ghazal!!
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