रविवार, 29 अप्रैल 2012

सृजन .

         १ 

वेद व्यास की तरह 
यदि मैं भी मांगूं -
कागज़ के रूप में धरती 
कलम के रूप में शेषनाग 
तो वह अधूरा ख़त पूरा करूं
जिसके अक्षर-अक्षर अर्थ-
को तुम, जानते तो हो-      
पर बाँचते नहीं...!                                                    


          २ 

मेरी आस्था में उद्वेग 
तुम्हारी आस्था प्रशांत 
तुम्हारी धरती सी खामोश 
मेरी में मुखर-मौन 
तुम दोगे मुझे एक 
दिव्यतम कल्पना 
जो ले जाएगी मुझे 
अनन्यतम भावलोक तक .

             - दिनेश द्विवेदी .

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