रविवार, 29 अप्रैल 2012

भ्रम भंग .

वेदना सहेजते रहे  
इसी आस में हम 
कि एक दिन वह 
हिमालय सी खड़ी हो जाएगी 
और उस की कोख जन्म देगी 
मुक्तिदायिनी गंगा को.                                             

वेदना हमारी किन्तु 
मरुस्थल सी फैल गयी 
निगल गयी निर्मम वह 
निरीह सरस्वती को...
चेतना तक न बची. 

सृजन भला कैसे हो 
कौन भला गीत गाये.

        - दिनेश श्रीवास्तव .

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