निजत्व से विश्वत्व की ओर
मानव
मन के उच्छ्वास को
शब्दों में पिरो
विचारों को साध कर
अनुभव के हलाहल को पी
अश्रु की स्याही से
उकेर देता है
अपनी भावनाओं को
और हो जाता है
सृजन कविता का
फिर भावनाएं
निजत्व से निकल
विश्वत्व की ओर
कर जाती हैं प्रस्थान .
संगीता स्वरुप ' गीत '
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