रविवार, 29 अप्रैल 2012

तब सृजन होगा .

अकथ कोई वेदना
जब ह्रदय को छलनी करेगी, 
टीस कोई धमनियों में 
रक्त जब बन कर बहेगी,
जब अजाना अश्रु कोई 
अपनी पलकों से चुनेगा ...
सृजन होगा .                     

आस लौ जब थरथराये 
तीव्र झंझावात में,
हाथ को ना हाथ सूझे
घोर काली रात में,
भोर की किरणों का कोई स्वप्न 
जब मन में बुनेगा  ...
सृजन होगा .

समर भूमि में ना थक कर 
बैठ जाये हार कर,
हाथ में दीपक उठाये 
आँधियों को पार कर 
पथिक अपने लिए  
नूतन पथ गढ़ेगा ...
सृजन होगा .

लडखडायेगा...
तो खोजेगा नया आधार भी,
टूटने पर ही तो पायेगा  
नया आकार भी,
गिर के जब जब भी कोई   
फिर फिर उठेगा...
सृजन होगा .

           - मीता .

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