जब ह्रदय को छलनी करेगी,
टीस कोई धमनियों में
टीस कोई धमनियों में
रक्त जब बन कर बहेगी,
जब अजाना अश्रु कोई
अपनी पलकों से चुनेगा ...
सृजन होगा .
आस लौ जब थरथराये
तीव्र झंझावात में,
हाथ को ना हाथ सूझे
घोर काली रात में,
भोर की किरणों का कोई स्वप्न
जब मन में बुनेगा ...
सृजन होगा .
समर भूमि में ना थक कर
बैठ जाये हार कर,
हाथ में दीपक उठाये
आँधियों को पार कर
पथिक अपने लिए
नूतन पथ गढ़ेगा ...
सृजन होगा .
लडखडायेगा...
तो खोजेगा नया आधार भी,
टूटने पर ही तो पायेगा
तो खोजेगा नया आधार भी,
टूटने पर ही तो पायेगा
नया आकार भी,
गिर के जब जब भी कोई
फिर फिर उठेगा...
सृजन होगा .
- मीता .
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