
सफ़र पे चलता रहा मुसलसल.
मैं ठोकरों से गिरा तो लेकिन,
खुदी संभलता रहा मुसलसल,
जिसे भी मैंने सुकून बख्शा,
वो मुझ से जलता रहा मुसलसल.
मैं जो भी हूँ बस करम है उसका,
जो मुझसे मिलता रहा मुसलसल.
मैं अपनी रुसवा नज़र से किस्से,
फलक पे लिखता रहा मुसलसल.
मुझे बियाबां में लाके मोहसिन,
मुझी को छलता रहा मुसलसल.
- इमरान .
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