सोमवार, 30 अप्रैल 2012

शब्द और सत्य


यह नहीं कि मैं ने सत्य नहीं पाया था 
यह नहीं कि मुझ को शब्द अचानक कभी-कभी मिलता है : 
दोनों जब-तब सम्मुख आते ही रहते हैं। 
प्रश्न यही रहता है : 
दोनों जो अपने बीच एक दीवार बनाये रहते हैं 
मैं कब, कैसे, उन के अनदेखे 
उस में सेंध लगा दूँ 
या भर कर विस्फोटक 
उसे उड़ा दूँ। 


कवि जो होंगे हों, जो कुछ करते हैं, करें, 
प्रयोजन मेरा बस इतना है : 
ये दोनों जो 
सदा एक-दूसरे से तन कर रहते हैं, 
कब, कैसे, किस आलोक-स्फुरण में 
इन्हें मिला दूँ— 
दोनों जो हैं बन्धु, सखा, चिर सहचर मेरे।


                     -  अज्ञेय .

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