शांत झील में
कंकड़ जैसी आ पड़तीं...
ख्वाहिशें !
खो गया जो...
उसे लौटा लाने की,
उसे लौटा लाने की,
मिल नहीं सकता जो...
उसे पाने की,
उसे पाने की,
ज़ख्म भरा नहीं...
कि फिर दर्द चखने की,
कि फिर दर्द चखने की,
हवाओं के रुख पर
चराग़ जला रखने की,
चराग़ जला रखने की,
.... हज़ार हज़ार ख्वाहिशें .
जिद्दी, अनमनी सी,
ख्वाबों की गलियों में अकसर
बेमकसद, आवारा फिरतीं
बेशुमार ख्वाहिशें .
जुगनुओं की तरह,
अंधेरों में,
सितारों का गुमां देतीं ...
दूर से दीखती हैं
कैसी जादुई !!
हाथों में पकड़ लो तो
कुछ भी नहीं !!
...ख्वाहिशें .
- मीता .
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