आज फिर शुरू हुआ जीवन .
आज मैंने एक छोटी सी ,सरल सी कविता पढ़ी ,
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा ,
आज एक छोटी सी बच्ची किलक मेरे कंधे चढ़ी .
आज मैंने आदि से अंत तक एक पूरा गान किया .
आज फिर जीवन शुरू हुआ .
सोमवार, 2 अप्रैल 2012
पाथेय
जब कभी मैं नहीं रहूँगा तुम्हारे करीब, तब तुम्हारी निचाट सूनी, बियाबान यात्रा के अँधेरे को रौशन करेंगी ये कवितायेँ - एकाकी- एकान्तिक यात्रा में मेरे ये शब्द - तुम्हारे पाथेय बनेंगे .
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