सोमवार, 16 अप्रैल 2012

हसरतें / ख्वाहिशें ... Those Desires !!

                                  
इंसान है तो ख्वाहिशें हैं, ख्वाहिशें हैं तो इंसान है. मसला लगता तो है ये बड़ा सीधा सा पर पता नहीं क्यूँ, जब इंसान जिंदगी में इस फलसफे को बरतना चाहता है तो एक किस्म का अधूरापन, एक किस्म की प्यास, कुछ पूरा न हो पाने की टीस सालती रहती है. शायद इसलिए कि ख्वाहिशें पूरी हों ना हों, ज़िन्दगी जरूर पूरी हो जाती है. ख्वाहिशें मरें ना मरें, इंसान जरूर मर जाता है.
लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है. ये तो एक पहलू है महज़ इस सिक्के का. सच तो ये हैं कि जैसे आत्मा अमर है, अजर है, सिर्फ शरीर का चोला बदलती है, उसी तरह ये अधूरी ख्वाहिशें भी ढूंढ लेतीं हैं अपना ठिकाना, किसी और मन की उड़ान में. वरना आज जो तरक्की इंसान ने की है वो कहाँ हो पाती? या यूँ कहें कि वो ख्वाहिशें जो हम औरों के लिए करते हैं, अक्सर पूरी हो कर रहती हैं.
अब ये जरूर है कि अपने खुद के लिए की गयी कुछ ख्वाहिशें अक्सर अधूरी रह जाती हैं. इसे उन जाती ख्वाहिशों का कमजर्फ होना कह कर टाल देना ही अच्छा होगा. रही बात तकलीफ़ की, तो इंसान है, ख्वाहिशें करना जानता हैं तो तकलीफ़ को ज़ज्ब करना भी जानता है. जब नहीं कर पाता तो कुछ लिख बैठता है. 
सुना है उसी लिखे को कुछ लोग नज़्म कहते हैं!

                     - पुष्पेन्द्र वीर साहिल.
_____________________________________________________________
' हमारे मेहमान ' में आज कमर जैदी जी की ये खूबसूरत ग़ज़ल जो उन्होंने ख़ास चिरंतन के लिए लिखी है . हम उनके आभारी हैं .


हसरतें ...




एक हसरत है कि तूने मुझे चाहा होता ,    
दूसरी ये कि तेरा कुर्ब भी पाया होता .


ये जो हर रोज़ परिंदों से सुना करता हूँ 
प्यार का गीत मुझे तूने सुनाया होता .


जागता ही न कभी नींद से ऐ जान-ए-वफ़ा 
तू अगर ख्वाब में मेरे कभी आया होता .


मिल गया यूँ तो बड़ा नाम मुझे दुनिया में 
काश खो कर इसे मैंने तुझे पाया होता .


कोई सरहद , कोई दीवार न हाइल होती 
फासला हमने अगर मिल के मिटाया होता .


एक कदम मैंने बढाया था कि दो गाम है तू 
एक कदम मेरी तरफ तूने बढाया होता .


मैंने जिस तरह तुझे चाहा , तुझे प्यार किया 
काश तूने भी मुझे ऐसे ही चाहा होता .


मैं कमर हूँ तो मेरी चांदनी ' मह्नूर ' है तू 
काश इक बार ये बावर तुझे आया होता .


               - कमर ज़ैदी
____________________________________________________________

अजब है ये बात ....

ख्वाहिशे होती है गुथ्थम गुथ्था              
एक दूसरे से जुडी,
एक पूरी होती है...
तो दूसरा सिरा सामने आ जाता है.


ख्वाहिशे होती है
हरदम अधूरी,
बताया ना
एक की उम्र बीते
दूसरी जनमती है.


ख्वाहिशे होती हैं,
इसीलिए आदम की जात है.
इसीलिए ज़ज्बात है.
इसीलिए कायनात है,
और गुलशन की फ़स्लात है.


                -  रश्मि प्रिया.
___________________________________________________________


ख्वाहिशें .                          



शांत झील में 
कंकड़ जैसी आ पड़तीं...  
ख्वाहिशें !


खो गया जो...  
उसे लौटा लाने की, 
मिल नहीं सकता जो...  
उसे पाने की,
ज़ख्म भरा नहीं... 
कि फिर दर्द चखने की,
हवाओं के रुख पर 
चराग़ जला रखने की,
.... हज़ार हज़ार ख्वाहिशें .


जिद्दी, अनमनी सी, 
ख्वाबों की गलियों में अकसर
बेमकसद, आवारा फिरतीं 
बेशुमार ख्वाहिशें .


जुगनुओं की तरह, 
अंधेरों में,
सितारों का गुमां देतीं ...
दूर से दीखती हैं 
कैसी जादुई !!


हाथों में पकड़ लो तो 
कुछ भी नहीं !!


...ख्वाहिशें .


             - मीता .


__________________________________________________________


' नए चेहरे ' में आप का परिचय कराते हैं अनन्या से 


छोटी सी ख्वाहिश .



एक दुनिया है मेरी 
तुम तक पहुंचानी है,
कांच की दीवारों से 
आवाज़ लगानी है.


तुम पलट के देख लो 
तो बस जाएगी शायद,
वरना वक़्त की आँधियों में 
टूट के बह जानी है.


इस दुनिया में तुम भी हो 
हैरान मत हो जाना, 
ख्वाहिशों को ख़ुशी से सबब 
बाकी बेमानी है.


              - अनन्या . 
___________________________________________________________


मेरे ही साथ जायेंगी ये मेरी ख्वाहिशें.



तकमील ही न पाएँगी ये मेरी ख्वाहिशें,
मेरे ही साथ जायेंगी ये मेरी ख्वाहिशें.


कोई सुकून का मुझे लम्हा न दे सकी,
कब तक यूँ ही सतायेंगी ये मेरी ख्वाहिशें.


मेरी तरह से ख्वाहिशें खाना-बदोश हैं,
मंजिल पे कैसे लाएँगी ये मेरी ख्वाहिशें.


दिल को कई दिनों से कोई आरज़ू नहीं,
फिर से कहर मचाएंगी ये मेरी ख्वाहिशें.


जिंदा हैं ख्वाहिशें तो क़दम भी रुके नहीं,
इतना ही काम आएँगी ये मेरी ख्वाहिशें.


                        - इमरान .


___________________________________________________________


अपनी अपनी ख्वाहिशें ...


दबी रहती हैं ख्वाहिशें 
कई बार मोड़ कर रखे हुए उस ख़त की तहों में 
जिसे आख़िरी तो नहीं होना था 
लेकिन 
जिसके बाद कोई ख़त नहीं आया.


लड़कियाँ  इमोशनल होती  हैं
संभाल  कर खोलती हैं उस ख़त की एक-एक तह को
और इंतज़ार की भाषा में बार-बार पढ़ती हैं
उन ख्वाहिशों को,
जो हर बार आंसुओं में डूब कर मर जाती हैं.


फिर किसी शाम एक सहेली
बनती है साक्षी
उन ख्वाहिशों के आख़िरी बार मरने का
जब कांपती उंगलियाँ ख़तों को आग लगाती हैं.


राख बन चुके कागज़ में
कुछ देर तक चमकते हर्फ़
इस अंतिम संस्कार में
मंत्रोच्चार करते हैं.
कौन कहता है लड़कियाँ चिताएं नहीं जलातीं?


लड़के प्रैक्टिकल होते हैं
फाड़ कर फेंक देते हैं ख़तों को
और पुरानी ख्वाहिशों से छुटकारा पा लेते हैं.
उनके हिस्से आया है सिर्फ
शरीर फूंकने का अधिकार.


अपनी-अपनी तकलीफ़ें हैं, दर्द हैं, जिम्मेदारियां हैं.


ख्वाहिशें भी हैं!


                 - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .


____________________________________________________________


ख्वाहिश ....





जानना चाहते हो मेरी ख्वाहिश
तो थोडा सा अपने प्यार में
मेरी चाहत का रंग घोलो
आसमान ले आओ नीचे
और इस सितारे से इसे तौलो


मेरी ख्वाहिशों के रंग
सितारों से ज्यादा चमकीलें है
जब मै चलूँ बादलों पर
तो खड़े हो निहारो नहीं ,
बस कुछ पूछे बगैर संग हो लो


मेरी ख्वाहिशे
तारों सी ही दूधिया
जिस रंग में रंग दो
उसी की हो जाये
और आब घोल दे अपनी
मैंने तो अपनी कह दी
अब तुम भी तो कुछ बोलो


बोलो ना
क्या है तुम्हारी ख्वाहिश ....:)


          - रश्मि प्रिया .
_____________________________________________________________


तू गर नहीं होता .

बहुत मुमकिन है 
ख्वाहिशों के सराबों में भटकता रहता.
प्यास दर प्यास...
रेत को आब समझता,
उसे चखता रहता.




वक़्त के गर्म सहराँ में 
तमाम उम्र, 
निगाहों में किसी दरख़्त की हसरत ले कर,
ज़ख़्मी पैरों को घिसटते हुए चलता...


थक के सोता भी अगर, 
तो कहीं ख्वाबों में भटकता रहता.
बहुत मुमकिन है 
ख्वाहिशों के सराबों में भटकता रहता....


गर तू नहीं होता. 


तू है.
अब और कोई ख्वाहिश नहीं है . 


                - मीता .


_____________________________________________


' Masters category ' में गुलज़ार साहब की ये नज़्म -


एक दिन .



मुझे खर्ची में पूरा एक दिन , हर रोज़ मिलता है 
मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है ,
झपट लेता है, अंटी से.


कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की 
आहट भी नहीं होती,
खरे दिन को भी खोटा समझ के भूल जाता हूँ मैं 


गिरेबां से पकड़ कर मांगने वाले भी मिलते हैं 
"तेरी गुजरी हुई पुश्तों का कर्जा है, तुझे किश्तें चुकानी हैं."


ज़बरदस्ती कोई गिरवी रख लेता है, ये कह कर 
अभी दो चार लम्हे खर्च करने के लिए रख ले 
बकाया उम्र के खाते में लिख देते हैं 
जब होगा, हिसाब होगा. 


बड़ी हसरत है पूरा एक दिन एक बार मैं 
अपने लिए रख लूं 
तुम्हारे साथ पूरा एक दिन 
बस खर्च करने की तमन्ना है.


             - गुलज़ार.


___________________________________________

आज सरगम में, मिर्ज़ा ग़ालिब की ये यादगार ग़ज़ल, जगजीत सिंह जी की दिल छू लेने वाली आवाज़ में ... हजारों ख्वाहिशें ऐसी 




________________________________________________________________________

10 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह........................

लाजवाब रचनाएँ..........
सभी एक से बढ़ कर एक.............
हर ख्वाहिश पर वाकई दम निकला......

रचनाकारों को ढेरों बधाइयाँ...

अनु

Nirantar ने कहा…

ज़िन्दगी की
शांत झील में
कंकड़ जैसी आ पड़तीं...
ख्वाहिशें !
सोते से उठाती हैं
ख्वाहिशें
हँसते को रुलाती हैं
ख्वाहिशें
मन का चैन छीनती हैं
ख्वाहिशें
ज़िन्दगी भर पूरी
होती नहीं हैं
ख्वाहिशें
(कुछ शब्द आप की रचना से चुरा लिए)

Perfect Union ने कहा…

मेरी ख्वाहिशे
तारों सी ही दूधिया
जिस रंग में रंग दो
उसी की हो जाये
और आब घोल दे अपनी
मैंने तो अपनी कह दी
अब तुम भी तो कुछ बोलो


बोलो ना
क्या है तुम्हारी ख्वाहिश ....:)

Rashmi Priya ji ki is rachna ko pad kar man mein kuch khwaishey phir jagi...:)

Perfect Union ने कहा…

एक हसरत है कि तूने मुझे चाहा होता ,
दूसरी ये कि तेरा कुर्ब भी पाया होता .


ये जो हर रोज़ परिंदों से सुना करता हूँ
प्यार का गीत मुझे तूने सुनाया होता .


जागता ही न कभी नींद से ऐ जान-ए-वफ़ा
तू अगर ख्वाब में मेरे कभी आया होता .


मिल गया यूँ तो बड़ा नाम मुझे दुनिया में
काश खो कर इसे मैंने तुझे पाया होता ...


Qamar zaidi ji ki nazm unkrisht hai..Mubarakbaad..!!

Perfect Union ने कहा…

तू है.
अब और कोई ख्वाहिश नहीं है .

ye do lines hi apne mein sampoorna kavita prateek hoti hain.. Badahai Meeta,:)

Perfect Union ने कहा…

bahot bahot sundar sanklan... :)

CHIRANTAN ने कहा…

आपका हार्दिक धन्यवाद @अनु जी!

@डा.राजेंद्र तेला"निरंतर" जी! आपकी सुन्दर अभिव्यक्ति और टिप्पणि के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.

@perfect union जी! आपकी विशिष्ट टिप्पणियों से मन और ह्रदय आनंदित हो गए, हार्दिक धन्यवाद आपका, भविष्य में भी आपका अनुमोदन प्राप्त होता रहेगा ऐसी आशा है.

...........सादर चिरंतन

अनुपमा पाठक ने कहा…

बेहद सुन्दर!
A literary feast for heart and mind!!!
Regards,

CHIRANTAN ने कहा…

@अनुपमा पाठक जी! आपकी सराहना के लिए दिल से आभार :)

leena alag ने कहा…

Behtareen introduction..."khwaahishon" ko lekar...kho kar...ya dabaa kar zindagi ka safar teh karna...our desires are the blueprints of what we would "like" life to be...but more than often what we want is not what life serves us...and so to avoid the pain...

"अपने अन्दर खुद अपने आपको मैं,
रोज़ ऐ दोस्त दफन करता हूँ"

Zaidi Saab ki poetry is like the guiding star...the North Star,inthis galaxy of budding stars...hope "Chirantan" follows in his footsteps and each of them carves a niche' for themselves soon... [:)]

Hearty welcome to Ananya...we hope to read more of you in the future...thanx for being a part of this issue... [:)]

मेरी ख्वाहिशे
तारों सी ही दूधिया
जिस रंग में रंग दो
उसी की हो जाये
और आब घोल दे अपनी
मैंने तो अपनी कह दी
अब तुम भी तो कुछ बोलो

बोलो ना
क्या है तुम्हारी ख्वाहिश .... [:)] ...bahut khoob!!!...kuch iss tarah...

"यार पहलू में है,तन्हाई है,कह दो निकले
आज क्यूँ दिल में छिपी बैठी है हसरत मेरी"

Meeta amazing poetry...paani...jugnu...transience of desires...n then again bas ek hi Aakhri dar jahan khwaahishein jaakar merge ho jaati hain...desires are indeed like bubbles on a river...jo poori na honay par sar patakti hain...zor maarti hain...n then jaisay hi woh samundar ke paas pahunchti hain shaant ho jaati hain n then they become one wid the sea... [:)]

"कह दो यह हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-इ-दागदार में"

Imraan ji bahut khoobsoorat nazm...

"तकमील ही न पाएँगी ये मेरी ख्वाहिशें,
मेरे ही साथ जायेंगी ये मेरी ख्वाहिशें."...but jaisa ki introduction mein bataya gaya hai ki khwahishein kabhi khatam nahin hotein...sirf unki shakl badal jaati hai...

"बाद मरने के भी छोड़ी न रफाकत मेरी
मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी"

Pushpendra ji,compliments on ur successful experimentation with the contemporary...it is indeed as good as the genre of your earlier work...you have maintained the same sensitivity which is the hallmark of ur work... [:)]

"आर्ज़ुऐन हज़ार रखते हैं
तो भी हम दिल को मार रखते हैं"

To add to the beauty of the issue there is GHALIB...and GULZAR SAAB...can life be any better???... [;)]

You Rocked again guys!!!!...cheers!!!... [:)]

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...