सोमवार, 14 मई 2012

इक मोड़ पे सफर के तू यूँ क्यों चला गया.....



दिल में गुबार भरके तू यूँ क्यों चला गया,
इक मोड़ पे सफर के तू यूँ क्यों चला गया।


सालार ए फ़ौज तू जो रहे हौसला बढे,
दुश्मन से आज डरके तू यूँ क्यों चला गया।


तेरी ये मंज़िलें हैं तेरा कारवाँ भी है,
सब कुछ तमाम कर के तू यूँ क्यों चला गया.


नगमा तू ही है दिल का तू ही साजे दिल भी है,
राहत मेरी नज़र के तू यूँ क्यों चला गया.


इस मोड़ की तमन्ना हमें इक ज़माँ से थी,
आके यहाँ गुज़र के तू यूँ क्यों चला गया.


'ताइर' की मर गयी है वो उड़ने की आरज़ू,
पर ही मेरे कतर के तू यूँ क्यों चला गया.





....इमरान

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