समंदर किनारे से रेत के कुछ कण चुन कर
उलझे भावों के धागों से सपने बुन कर
चले हम जो कहते हुए लहरों की कहानी
जुड़ गए कितने पथिक आहटें सुन कर .
आंसुओं का एक समंदर सबके नयनों में समाया
आती जाती लहरों का संगीत ही चहु ओर छाया
ऐसे में गूंजता है एक मौन पूरी तन्मयता से
अभी अभी एक दीप ने मानो अँधेरे को हराया .
जलती हुई लौ का नन्हा प्रकाशवृत्त सबल है
मझधार का किनारों के प्रति मोह प्रबल है
बिखरे हैं कितने रेतीले आकार समंदर किनारे
धाराओं के सान्निध्य में भावनाओं का संसार धवल है .
इस धवल संसार से सुनहरे कुछ मोती चुनकर,
चलो हम सजाएं परिदृश्य एक कविता बुन कर .
निश्चित ही हो जाएगी परिलिक्षित गहन शांति,
लिखेंगे हम ध्यानस्थ समंदर की धड़कन सुन कर .
- अनुपमा पाठक .
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