अचानक घर की हर दीवार से
उग आयी हैं आंखें
मुसलसल मेरी जानिब देखतीं
हैरत औ ग़ुस्से से
मैं ज़ख़्मी हो गया हूँ
इनके ज़हरीले सवालों से
ये आखिर क्या किया तूने?
वो जिस के सेहन से डोली उठी थी तेरी बहनों की
जहाँ इक दूसरे घर से तू डोली ले कर आया था
तेरे मासूम बच्चों की जहाँ किलकारियां गूंजीं
जहाँ से बूढ़े माँ और बाप को अंतिम बिदाई दी
सुना है आज उस घर का ही सौदा कर लिया तूने?
सुना है जिस के हाथों तूने बेचा है ये घर अपना
नयी तामीर की खातिर इसे मिस्मार कर देगा
अगर मुमकिन हो तो इतनी गुजारिश उससे कर लेना
कहीं मलबे में तेरे बाप के कुछ ख्वाब दिख जायें
तो उनको साफ़ पानी के
किसी दरया में डाल आये .
- खुशबीर सिंह शाद .
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