सोमवार, 25 जून 2012

काम के हैं खँडहर :)


मिस्र , मेसोपोटामिया के हों 
या मोहनजोदड़ो, हड़प्पा के ...
खँडहर बहुत काम के हैं।


न केवल ये वाकिफ कराते हैं 
हमें हमारे पूर्वजों के रहन सहन से, 
बल्कि हमारे आधे अधूरे 
इतिहास को भी करते हैं पूरा।


मकान हों, महल हों, या भव्य अट्टालिकाएं 
हम ही इन्हें बनाते हैं,
हम ही इन्हें रखते हैं आबाद।
जब तक इनमें हमारी आवत जावत रहती है 
ये दुरुस्त रहते हैं ,
खूबसूरत रहते हैं ...
जब हम इन्हें पीछे छोड़ 
आगे निकल जाते हैं 
और फिर 
वहीँ के होकर रह जाते हैं,
तब 
ये अकेले 
समय के थपेड़े झेल नहीं पाते 
और खंड-खंड हो जाते हैं।


वैसे आबाद मकान हो या खँडहर 
काम तो दोनों ही आते हैं...
आबाद रहने पर 
घर कहलाते हैं, 
खँडहर हो जाने पर 
कितने ही 
पशु-पक्षियों का घर बन जाते हैं।


         - ललित मोहन पांडे 

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