सोमवार, 25 जून 2012

आज गिरा खण्डहर हूँ...



ग़म में डूबा हुआ वीरान मैं एक मंज़र हूँ,
कल इमारत था मगर आज गिरा खण्डहर हूँ।


टूटा बिखरा हुआ सा आज मैं सामान सही,
कल तलक जो भी था हूँ तो मगर इन्सान वही।


क्या बताऊँ तुम्हें इतना क्यूँ मैं बेचैन रहूँ,
सोज़े गुमनाम को दिन रात मैं सीने में सहूँ।


तुम में खोने से भी पहले मैंने ये पूछा था,
मेरे हमदम ये बताओ है मेरा दर्जा क्या?


तुमने क्यों मुझसे कहा के तू मेरा किस्सा है,
मेरे किरदार का टूटा हुआ तू हिस्सा है।


क्यूँ मेरे सर के निगहबान बने साया किये,
क्यों मेरे साथ रहे ख्वाब में क्यों आया किये।


तुमने रिश्ते को हमेशा के लिए तोड़ दिया,
मुझको जलते से सवालों से घिरा छोड़ दिया।


मेरी कश्ती है बुरीदा मेरी पतवार भी गुम,
कैसे हालात में बिछड़े हो मुझे छोड़ के तुम।


मैं निगाहों में कभी गर्द नहीं दे सकता,
मिट तो जाऊँगा तुम्हें दर्द नहीं दे सकता।


गर तुम्हारी है रज़ा खुद को मिटा लूँगा मैं,
अबके मर के भी न आवाज़ लगाउँगा तुम्हें।


चन्द लम्हात में जो उम्र गुज़ारी मैंने,
उसकी यादों की नक़ल दिल पे उतारी मैंने।


मैं तो अल्लाह से दिन रात दुआ करता हूँ,
खुश रहो तुम यही फरियाद किया करता हूँ।


खण्डहर तुमने बनाया है भले ही मुझको,
दिल तो फिर भी ये फक़त याद करेगा तुमको।


               - इमरान खान ' ताइर '

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