सोमवार, 23 जुलाई 2012

एक बूँद .



आज फिर एक बूँद टपकी है 
और मैंने तेरे नाम की छतरी 
पर उसे झेला है , 
आज फिर 
तेरे होठों की बात चली है 
और मैंने 
आसमान से रौशनी को बटोरा है .

तेरे होंठ -
मेरे लिए एक कलम हैं 
जो मेरी देह के वर्कों पर 
यादों की शरबती लिखावट 
डाल गए हैं ...

तेरे होंठ -
जो एक दवात हैं 
जहाँ मेरी आँखों की 
मयूरपंखी लेखनी 
डूब - डूब जाती है 
और दिल के सफ़ेद कागज़ 
पर मेघदूत लिख देती है ...

तेरे होंठ -
मन्मथ खिन्ने राधे के 
स्पर्श से भीगे हुए हैं 
और बार बार मेरे 
मन की छत पर खड़ी 
भावना की राधा को 
कंपा कंपा देते हैं 
हर रात मेरे प्यार का जयदेव 
गीत गोविन्द की 
एक और रचना करता है
और मैं 
हर रात अपनी भावाकृति 
तेरे होठों के नाम 
समर्पित कर देता हूँ ...

तेरे होंठ -
जो एक पगडण्डी हैं 
जिन पर मैं 
भीड़ भरे राजमार्ग 
से ऊब कर 
चलना शुरू कर देता हूँ ...

तेरे होंठ -
वृन्दावनी कुंज हैं 
जिसकी छाया में 
मेरी मानसी राधा -
बैरन हो आई गर्मी से बचने 
छिप जाया करती है ...

तेरे होंठ - 
मेरे लिए चारों धाम हैं 
जहाँ मन-यात्री मेरा 
यात्रा किया करता है ...

तेरे होंठ -
गंगा का जल 
जहाँ मेरी कल्मषता 
धुल जाया करती है .

तेरे होंठ - 
जहाँ मेरी यात्रा का 
अंतिम निशान गड़ा है... 
ऐसे तेरे होंठों के नाम 
मेरे प्रेम का 
एक शहदीला नमन .

    - दिनेश द्विवेदी .

पुस्तक संग्रह ' स्पर्श ' से ली गयी रचना .


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