प्रिय बूँद
तुम आओगी क्या इस बार भी ?
पिछली बार जब तुम आयीं थीं ...
अपने साथ उसे भी लायी थीं .
भिगो गयी थीं तुम
दोनों के तन मन
लेकिन ...
तुम्हारे जाने के साथ ही जैसे
पड़ने लगीं सूरज की
जलने वाली किरणें और
जाने क्यूँ
सब नमी जो तुम साथ लायीं थीं
वाष्पित हो गयी .
सब सूख गया ,
वो भी चला गया .
देखो
इस बार भी जब तुम आना
उसे भी साथ लाना
फिर कभी न जाने के लिए ...
बनी रहना मेरे साथ यूँ ही
ताकि बना रहे वो भी मेरे साथ
और बनी रहे वो नमी भी ...
जी उठूँ मैं
और पल्लवित भी हो जाऊं
भर जाएँ शुष्क हो चुकी मेरी दरारें,
बनी रहना तुम यहीं
कि जब जाऊं अनंत यात्रा पर
तो एकदम हरी भरी सी
उसकी ही बाहों में ...
- सुनीता सनाढ्य पाण्डेय .
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