
मन कितने पीछे दौड़ जाता है
मुझे मेरा बचपन याद आता है।
कितनी शैतानी, कितने उधम
सारा दिन बदमाशी, और कूदें नाचे हम
मम्मा का नाराज़ होना, पापा का डपटना
मनमानी करना ढेर सी
और किसी की ना सुनना
हार कर माँ कहती "ये इतवार क्यों आता है!
सारी मुसीबतें ये छुट्टी का दिन लाता है."
लगता था माँ हमे प्यार नहीं करती
इसीलिए इतवार का इंतजार नहीं करती
अब मै माँ हूँ,वही माँ का कहा दोहराती हूँ।
माँ से शिकायत थी, पर माँ जैसी बन जाती हूँ।
जैसे ही माँ याद आये, मन मुस्काता है
मुझे मेरा बचपन याद आता है।
- राजलक्ष्मी शर्मा .
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