वो जब खामोश रहती है
ढेरों बातें करती है !
उसके होंठ हलके से लरज़ कर
मुस्कुराते हैं ...
तो गालों पर पड़े गड्ढे
कई किस्से सुनाते हैं
पलक उठ कर जो झुकती है,
ढेरों बातें करती है !
कभी कुछ करते करते
चेहरे से जुल्फें हटाती है
तो जैसे खुद ब खुद
कोई कहानी बनती जाती है
पलट कर देख भर लेती है ...
फिर गर्दन झटकती है,
ढेरों बातें करती है !
मैं उस से कहता हूँ
तुम सामने बैठी रहो यों ही ...
मैं तुमको देखते बैठा रहूँ
तुम चुप रहो यों ही ...
वो कुछ बोले बिना जब
खिलखिला कर हंसने लगती है,
तो ढेरों बातें करती है !
- प्रलभ .
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