वो .
हर वक़्त
चुप चुप ...
बस
उसकी चूड़ियां खिलखिलाती हैं
नाक की महीन लौंग
वैधव्य का गीत गाती है
वो
नव-यवना मजदूर
विधवा है
सर के बोझ से अकड़ी गर्दन
हवाओं की गलन ...
ठेकेदार की चुभती निगाह
पेट की भूख
अकेलेपन का दर्द
और भी
जाने क्या क्या
छिपा लेती है
वो
अपनी
लाल चेकदार शाल में .
- अमित आनंद पाण्डेय .
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