किस कदर है शोर मुझमें, किस कदर खामोश हूँ .
मेरी खामोशी मेरा रद्द ए अमल हरगिज़ नहीं
मत समझना तेरी जानिब हूँ अगर खामोश हूँ .
तुने ही तसहीर कर दी ग़म की सब के सामने
मैं तो इस शिद्दत में भी ऐ चश्म ए तर खामोश हूँ .
जाने कैसी बेहिसी मुझ पर मुसल्लत हो गयी ?
सर ब सर जलता हूँ लेकिन सर ब सर खामोश हूँ .
ऐ मेरी मजरूह गैरत, दरगुज़र कर दे मुझे
तेरा मुजरिम हूँ, तेरे इस हाल पर खामोश हूँ .
शाद मेरे गिर्द बे आहंग आवाजों का शोर
और मैं हर इक सदा से बेखबर खामोश हूँ .
- खुशबीर सिंह शाद .
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