कहते हैं ' मौनं सम्मति लक्षणं '
हमसे बेहतर कौन समझता है ये बात !
होता है सब कुछ यहाँ
'खामोशी के साथ'.
धड़ल्ले से बिक रहा है
मिटटी - पत्थर
लोहा - लकड़ी
ईमान ...
देश ...
मेजों के नीचे
फैले हैं हाथ ...
'ख़ामोशी के साथ'.
सैकड़ों हो चुके ,
सैकड़ों हो रहे हैं घोटाले
किसी को कुछ
पता नहीं चल पा रहा है
न कोई पूछ रहा है
न कोई बता रहा है
आयोगों की रिपोर्टें
तहाई जा रही हैं
ठन्डे बस्तों में
दिन रात ...
'ख़ामोशी के साथ'.
जान की खैर मना
साध ली है सबने चुप्पी
भूल चले हैं लोग
जम्हूरियत के हक़ हक़ूकात ...
आदी हो चले हैं अब
गले गले कीचड में
डूब डूब जीने के
'ख़ामोशी के साथ'.
- ललित मोहन पाण्डे .
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