सोमवार, 20 अगस्त 2012

ख़यालों की बस्ती



खामोश है रात 
खामोश सितारे हैं 
पेड़ पर बैठा पीला चाँद भी 
खामोश है ...

मैं तुम को सोच रही हूँ 
और 
यादें बोलती हैं .


कोई खुशबू 
चली आई है माज़ी से . 
किसी किताब में रक्खा 
कोई फूल 
फिर ताज़ा हुआ है ...

ख़यालों की बस्ती में 
बत्तियां जलती हैं ... बुझती हैं .

ये बस्ती  
जागती तब है 
जब सारे शोर सो जाते हैं ...

मुसलसल 
गूंजती है 
फ़क़त खामोशी .

    - मीता .

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