खामोश है रात
खामोश सितारे हैं
पेड़ पर बैठा पीला चाँद भी
खामोश है ...
मैं तुम को सोच रही हूँ
और
यादें बोलती हैं .
कोई खुशबू
चली आई है माज़ी से .
किसी किताब में रक्खा
कोई फूल
फिर ताज़ा हुआ है ...
ख़यालों की बस्ती में
बत्तियां जलती हैं ... बुझती हैं .
ये बस्ती
जागती तब है
जब सारे शोर सो जाते हैं ...
मुसलसल
गूंजती है
फ़क़त खामोशी .
- मीता .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें