मंगलवार, 7 अगस्त 2012

नींद / The Pause .


नींद. दिन भर के श्रम के बाद थक कर चूर हो चुके मानवीय पुरुषार्थ की कुछ घडी की विश्रांति - क्या यही मात्र है नींद? या इससे भी कुछ अधिक और?

मुझे तो ऐसा लगता है कि नींद कल्पनाओं का वो असीम विस्तार है जहां किसी भी उम्र का व्यक्ति अपने बाल-मन को फिर  से छूट  देता  है मन चाहे रंग  अपनी  इच्छाओं  के कैनवास  में  भरने  की.
या नींद एक ऐसा औडीटोरियम  है जहाँ भूत और भविष्य की फीचर फिल्में बेरोक-टोक, बिना सेंसर, बिना टिकट - जब चाहे रुकती-चलती प्रसारित होती हैं हमारे सुषुप्त मन के रजत पट पर. जहां किरदार मुक्त हैं निर्देशक के बंधन से. अजीब सा ''लाइव'' टेलीकास्ट है इस ''नींद'' के अन्दर ! एक पूरे ''रीयलिटी शो'' की तरह. 
नींद एक मरहम है जो शरीर को नहीं, आत्मा को आराम देता है. दिन भर जमाने के ठुकराए हुए नींद के आगोश में जाकर शहंशाह बन कर कुछ पल ही सही, भूल तो जाते हैं अपना दुःख-दर्द. और शायद यहीं नींद का न्याय है कि दिन में वो ठोकर मारने वाले पाँव रात भर दो पल की नींद के लिए करवट बदलते हैं.
आपको भटकना पसंद है तो आइये, एक नींद यहाँ छाई हुई है... बुला रही है आपको. कहिये, चलेंगे नींद के आगोश में? 

                  - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .
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 ग़ज़ल 

हम आगाज़ करते हैं 'श्री खुशबीर सिंह शाद जी ' की इस बहुत बेहतरीन ग़ज़ल के साथ जिसे हम आप के लिए ' Master's Category ' के अंतर्गत लाये हैं . हम ह्रदय से उनके आभारी हैं .



इसी हसरत में मैंने कर लिया खूनाब आँखों को 
के शायद नींद आ जाये मेरी बेख्वाब आँखों को .

उसी को देखना और बस उसी को देखते रहना 
न जाने आयेंगे कब बज़्म के आदाब आँखों को ?

कोई भी दर्द का मौसम यहाँ यकसाँ नहीं रहता 
कभी सहराँ सताते हैं, कभी सैलाब आँखों को .

मैं गहरी सोच में था और कोई भीगा हुआ लम्हा 
न जाने कर गया फिर आ के कब सैराब आँखों को .

वो जिन में होश का हर इक सफीना डूब जाता है 
कभी हम से भी तो मिलवाओ उन गिरदाब आँखों को .

अगर ताबीर से महरूम ही रहना था; शाद: इनको 
तो फिर क्या सोच कर बख्शे गए हैं ख्वाब आँखों को .

            - खुशबीर सिंह शाद .  

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आज हमारे मेहमान हैं श्री अमित आनंद पाण्डेय जी . इन की कवितायेँ , पता भी नहीं चलता कब , कैसे , दिल में उतरती चली जाती हैं ... और देर तक टिकी रहती हैं . अमित जी स्वागत है आप का .

तुम ... नींद सी !

तुम 
नींद सी 
रोज़ आती हो 
मेरे आस पास 
मेरा माथा सहलाते 
झुकी पलकों 
उलझी अलकों के साथ 
और 
मैं 
लगभग रोज़ ही 
जागता 
रह जाता हूँ 
पूरी रात .

- अमित आनंद पाण्डेय .
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नींदों में सफ़र ...
बहुत कम 
निशानियाँ मिली थी तुम्हारी ...
शताब्दियों पहले
जैसे 
बहुत तेजी से 
तुम चले गए हो मुझे छोड़ कर ,
हर जनम उन खूबियों में से 
कुछ भूलती जा रहीं हूँ ...
गहरी नींद की सीढियां उतरते 
किसी दिन पाँव फिसला है 
और साकार हो जाते हो तुम .

एक  बेचैनी  बढती है , 
कई अतृप्त भाव जागते हैं ,
मै जीने लगती हूँ 
कोई देवत्व काल 
उस नींद में 
क्षण भर को मिले 
तुम्हारे  सामीप्य 
में जी लेती हूँ 
एक पूरा जीवन ...

जागने पर
फ़िर विस्मृति  
हावी हो जाती है 
पर आने वाले कई दिनों तक 
पूरी सृष्टि 
एक पवित्र स्थान लगती है ...
और
मेरे शरीर में बसी 
तुम्हारी उपस्थिति की देह गंध 
मंदिर में सुलगते 
लोबान और धूप की याद दिलाते है .
              
              - राजलक्ष्मी शर्मा _____________________________________________________
नींद की गोद से 

एक दिन ज़िन्दगी
अपना अन्तिम राग
गाएगी!
फिर,
मीठी सी नींद
आ जाएगी!

मौत भी तो नींद ही है...
एक गहरी नींद-
जिसके इस पार भी प्रकाश है
जिसके उस पार भी प्रकाश है .

जैसे
एक रात की नींद
देती है नया सवेरा,
वैसे ही ज़िन्दगी जब नींद लेती है...
तब होता है नया जन्म
मिलता है नया बसेरा.

नींद के आँचल का ममत्व
हर सुबह
आँखों की ज्योति में
बोलता है,
जीवन और मौत के
कितने ही रहस्य
अनुभूति के धरातल पर
खोलता है!

सब कुछ बिसरा कर
नयी किरण के स्वागत में
नींद की गोद से
हम हर रोज़ जाग रहे हैं...,
कितने ही नींद के
पड़ाव पार कर
एक जीवन से दूसरे की ओर
मानों, हम अनंतकाल से
भाग रहे हैं...!

यूँ ही यह क्रम
चलता जाता है,
जीवन और विराम का
गहरा नाता है!

- अनुपमा पाठक .
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I slept, and dreamed ...



I slept, and dreamed that life was beauty;
I woke, and found that life was duty.
Was thy dream then a shadowy lie?
Toil on, sad heart, courageously,
And thou shall find thy dream to be
A noonday light and truth to thee.

          - Louisa May Alcott .

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कायर .



वो खिडकियों को बंद रखता है,
वो अपने घर से निकलता नहीं है।

वो डरता है 
कि गर्म सड़कों पर
नंगे पैर, कोई नन्हा 'सच'
कहीं भीख मांगता न दिख जाये...
और अपनी आँखों का 
जलता निशान दाग दे उस पर।
उसके जिस्म पर अब तक 
कई निशान हैं ऐसे।

कोई उसूल खुले आम जिबह होता है ...
गर्म खून के छींटे हवा में उड़ते हैं...
और उसके घर की दीवारों से 
कोई चीख टकराती है ...
तब वो 
काँप कर एक नींद ओढ़ लेता है।

फिर उस नींद में बुनता है 
चाँद तारों को 
तितलियों को, बादलों को,
कोहसारों को ...
और कुहरे की 
एक चादर लपेट लेता है। 

पर क्यूंकि नींद है 
ज़ाहिर है टूटती होगी ...
न चाहते हुए भी 
आँखें खुलती होंगी...
किसी दरार से 
घर में घुस आई चीखें 
कानों के रास्ते 
फिर खून में घुलती होंगी ...

तब वो शायद 
उस बंद कमरे में 
छटपटाता हो ...
सर पटकता हो ...

            - मीता . 
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नींद ..सपनो की चारागाह

इक सफ़र 
जो जागे जागे पूरा नहीं होता 
मै कर लेती हूँ 
सपनो में 
मुझे नींद प्यारी है 
और नींद का  सफ़र अजीब होता है 
कल ही ढेर सारी घास 
खिलाते देखा एक मेमने को
चरवाहे की गोद में  [शुभ संकेत ] 
और देखा खुद को ..

एक सुन्दर सा बाग़ 
जिसमे झूम रही है डालियाँ 
नाच रहे है मोर 
चारों ओर फ़ैली रौशनी 
एक सुन्दर सी भोर 
हाथ बढ़ाता मुझ को सूरज 
खींचे अपनी ओर 
साथ साथ चलती घटायें
हवाएं 
धरा सम्हाले दिशाओं  का छोर 
मुझे क्यों लगता है 
मै उम्मीदों की पतंग हूँ 
और सूरज ने थाम रखी है डोर .

कभी देखूं 
मेरे बोये बीजों के बीच 
सूरजमुखी की 
कई पौध निकल आयी 
जो ढूंढें सूरज चहुँ दिशा
जिधर जाये सूरज 
चलें उसी ओर .

ये सपने...ये नींद..कभी ना टूटे.
कभी कभी ऐसा भी ....

सपनो का सच ..

एक रोज देखा 
'उस लड़की ' को 
जो दुपट्टे के कोने मोडती खड़ी थी 
किसी के इंतज़ार में 
आखिर इतनी दूर से कैसे पढ़ती आँखे !
जो हकीकत होती 
सपनो में मैंने पढ़ा 
सारा कुछ जो बयां कर सकती थी वो ...
और दर्द से भीग गयी आँखे .

मै रोकना चाहती थी 
मत जाओ 
ये रास्ता ठीक नहीं ...
पर नींद टूट गयी .

आज दिन भर 
एक पछतावा लेकर चलूंगी 
रात सपने में उसे तलाश करूंगी
मिल जाये तो कहूंगी  
प्यार छलावा नहीं होता .
पर 
उसे नहीं मिलने वाला 
उसका प्यार ...
सपने में मै भविष्य पढ़ लेती हूँ .

           - राजलक्ष्मी शर्मा .
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मेरी नींदों की कशमकश ये है
       ख़्वाब देखें या इंतज़ार करें


एक चौखट है नींद की जिसमें
कोई दरवाजा नहीं है लगवाया
कोई मासूम सा यकीं है जो
मुझसे कहता है, कोई आयेगा.

जानता हूँ मैं ये भी सच, लेकिन
एक हसीं ख़्वाब इसी चौखट से
हाथ लहरा के जा चुका कब का
मुझसे दामन छुड़ा चुका कब का ...

और वो शब कि आज की शब है
ख़्वाब आते हैं, जाते रहते हैं
मेरी आँखों में जागती नींदें
पढ़ते रहते हैं, लिखते रहते हैं

उनकी कोशिश है ऐसी सूरत हो
दिल में उनका मुक़ाम हो जाए
कोई ख़ाली सा कैनवस भर दें
एक तस्वीर नाम हो जाए

कोई समझाए उनको ये लेकिन
ख़्वाब जो जा चुका है इस दर से
बेवजह भीड़ देख घबरा के
लौट जाए न वो कहीं फिर से

मेरी आँखों की कशमकश ये है
सोयें या यूँहीं बेक़रार रहें
मेरी नींदों की कशमकश ये है
ख़्वाब देखें या इंतज़ार करें

बात मुख़्तसर सी है 
बात पर पुरानी है

           - पुष्पेन्द्र वीर साहिल .

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मेरी नींदों को न तोड़ो के मुझे सोने दो




मेरी नींदों को न तोड़ो के मुझे सोने दो,
तुम अभी से न जगाओ के मुझे सोने दो।

जब मैं आगोश में रंजों के चली जाती हूँ,
थक के सो जाती हूं नींदों में सुकूँ पाती हूँ।

देखो दुनिया से मुझे और मिला ही क्या है,
बस ये ख्वाबों से भरी नींद मेरी दुनिया है।

मेरा हर ख्वाब कोई रंग नया लाता है,
वो जो मिलना नहीं नींदों में चला आता है।

प्यार से राह के काँटों को वो चुन लेता है,
जो भी कहती हूँ मैं वो प्यार से सुन लेता है।

मुझको मुझसे न छुड़ाओ के मुझे सोने दो,
तुम अभी से न जगाओ के मुझे सोने दो।

अपनी तन्हाइयों में पास मुझे रहने दो,
मेरे दिल में छुपे जो राज़ मुझे कहने दो।

रात का चाँद हूँ मैं और मैं सवेरा हूँ,
मैं किसी का भी नहीं नूर मैं तो तेरा हूँ।

तू तो पगली है खुद को बेकरार करती है,
जब तलक मैं हूँ तू बेकार फिक्र करती है।

तेरी सोचों की उड़ानों का मैं परिन्दा हूँ,
तेरा हमराज़ हूँ मैं तुझसे ही तो ज़िन्दा हूँ।

चल खयालों के नये सिलसिले बनायेंगे,
जहाँ कोई न गया चल वहाँ पे जायेंगे।

जो तुम्हारे हैं सारे दर्द मुझे सहने दो,
मेरे दिल में छुपे जो राज़ मुझे कहने दो।

      - इमरान खान 'ताइर' 
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नींद .


रात 
मेरी रूठी हुई नींद 
मेरे पास आई थी ,

मैंने देखा 
मेरी राह तकते तकते 
पीला पड़ा था उस का माथा 
बिखरे हुए थे बाल ,

बदहवास सी थी 
मेरी नींद ,

एक 
लम्बे अरसे के बाद 
आज की रात 
मुझे साकार पा
स्तब्ध थी ...
मेरी नींद .

अपलक ...
निहारती रही 
दबी सहमी ,
स्नेहिल आँखों से 
मेरे पायताने बैठी 
मेरी अप्राप्य प्रेयसी 

मैं 
आज की रात फिर 
जागता रह गया !

        - अमित आनंद पाण्डेय .
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श्रमिक की नींद .

वो एक कामगार है 
ज्यादा जतन नहीं करने पड़ते 
नींद के लिए 
यथार्थ के कठोर धरातल 
जब पीठ छिल देते हों 
समय की मार से 
कठोर और काले तन को 
धूप में ही आ जाती है 
सुकून भरी नींद 
पंछियों और पशुओं के 
उस चिरंतन निवास तले .

     - राजलक्ष्मी शर्मा . 
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फिर से .

मेरे न रहने पर भी 
सुबह की धूप निकलेगी ,
तुम्हें सहला के गुज़रेगी ... 
कहीं 
कोई चिड़िया गाएगी ...
हवा तुम तक 
खिले फूलों की खुशबू लाएगी ...
और 
तुम देखोगे 
कुछ भी नहीं बदला !

तितलियाँ 
फूल खोजेंगी ,
रोज़ 
वो शाम का सूरज 
उनींदा हो के डूबेगा ,
सितारे 
टिमटिमायेंगे ,
किसी मैदान में 
नन्हे बच्चे 
खिलखिलायेंगे . 

वही 
हर दिन की 
आपा धापी में 
हर दिन 
रहेंगे सब ...
थकेंगे , 
शाम को 
अपने घरों में लौट आयेंगे .

किसी के 
होने, न होने से 
कब 
कुछ भी बदलता है .

तुम याद रखोगे -
तो ना हो कर भी 
होऊँगी .
और 
अगर भूल जाओगे -
तब भी 
मैं रहूंगी ;
और 
देखूँगी तुम्हें 
तुम्हारी आँखों से .

कभी महसूस भी होगा 
तुम्हें 
जब कोई झोंका 
छू के गुजरेगा .
या फिर 
बारिश की पहली बूँद 
जब 
मिटटी को महकाएगी 
और 
सौंधी सी वो खुशबू 
तुम्हारे पास आएगी .

ये जो एक नींद है 
हम जिस को कहते 
ज़िन्दगी हैं ;
जब इस से जागते हैं हम ,
तो मिलते हैं 
उजाले में 
न जाने 
कितने चेहरों से ,
हमें 
पीछे कहीं 
जो छोड़ आये थे .

कभी 
जब आँख खोलोगे ,
मिलूंगी फिर तुम्हें 
उस नींद के आगे 
सुबह की रौशनी में ;
और थामूंगी 
तुम्हारा हाथ -
फिर से .

                            - मीता .
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To Be , or Not To Be ...

Probably the best-known lines in English literature, Hamlet's greatest soliloquy is the source of more than a dozen everyday expressions—the stuff that newspaper editorials and florid speeches are made on. Rest assured that you can quote any line and people will recognize your erudition. Presenting it in the master's category for you -



To be, or not to be, that is the question:
Whether 'tis nobler in the mind to suffer
The slings and arrows of outrageous fortune,
Or to take arms against a sea of troubles
And by opposing end them. To die—to sleep,
No more; and by a sleep to say we end
The heart-ache and the thousand natural shocks
That flesh is heir to: 'tis a consummation
Devoutly to be wish'd. To die, to sleep;
To sleep, perchance to dream—ay, there's the rub:
For in that sleep of death what dreams may come,
When we have shuffled off this mortal coil,
Must give us pause—there's the respect
That makes calamity of so long life.

For who would bear the whips and scorns of time,
Th'oppressor's wrong, the proud man's contumely,
The pangs of dispriz'd love, the law's delay,
The insolence of office, and the spurns
That patient merit of th'unworthy takes,
When he himself might his quietus make
With a bare bodkin? Who would fardels bear,
To grunt and sweat under a weary life,
But that the dread of something after death,
The undiscovere'd country, from whose bourn
No traveller returns, puzzles the will,
And makes us rather bear those ills we have
Than fly to others that we know not of?
Thus conscience does make cowards of us all,
And thus the native hue of resolution
Is sicklied o'er with the pale cast of thought,
And enterprises of great pitch and moment
With this regard their currents turn awry
And lose the name of action.
Hamlet Act 3, scene 1, 55–87 

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सरगम में हम आप के लिए लाये हैं फिल्म 'आलाप 'का ये गीत , जिसे लिखा है  'श्री हरिवंश राय बच्चन जी ' ने, और अपनी मखमली आवाज़ में ढाला है 'येसुदास' ने . प्रस्तुत है 'कोई गाता मैं सो जाता ' .



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2 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर.............
हर रचना लाजवाब....
मानों चुन चुन के मोती पिरोये हों किसी माला में..
शुक्रिया..

अनु

Reena Pant ने कहा…

सभी रचनाएँ मन को छुने वाली ,बहुत सुंदर और एक नींद मेरी भी ....
आज खुमारी सी छाई है
शायद बहुत दिनों के बाद,नींद आई है ......
आज बारिश हुई है फिर से कहीं
अभी-अभी खबर ये आई है
महकी हुई है खुशबु से
हर ग़ज़ल जो हमने गाई है
यूँ तो कहते हैं सपने आते है
नींदों में. हमने तो
हरदम उनीदी आँखों में
सपनो की दुनिया सजाई है.......
रात दिन जाग-जाग कर हमने
लाख -लाख सपने सजाये है
तुम कहते हो हमारी आंखों में
लाली सी क्यों ये छाई है .......
कभी टूटे,कभी बिखरे
कभी खोये,कभी संजोये
ढेरों वादों की किताबे
लिखी-लिखाई हैं ......
तुमने आज देखा
पलकों को मूंदे हुए
और एलान किया
कि हमको नींद आई है
तुम क्या जानो कि हमने तो
बरसों से ख्वाबो की
महफिलें सजाई है .........

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