मंगलवार, 4 सितंबर 2012

अनिर्णय: शब्‍द तो कुली हैं


अलग-अलग पाँवों की
अलग-अलग पगडण्डी,
इस पर मैं निकल पड़ूँ
या उस पर हो लूँ?


अलग-अलग आँखों का
अलग-अलग सुख-सपना,
किसको मैं बन्द रखूँ
किसको मैं खोलूँ?


अलग-अलग पर्दों के
अलग-अलग कान हैं,
इधर फुसफुसा दूँ मैं
या उधर बोलूँ?


अलग-अलग हाथों में
अलग-अलग पलड़े हैं,
इस पर बिठाऊँ तुम्हें
या उस पर तौलूँ?


------सरोजकुमार 

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