मंगलवार, 4 सितंबर 2012

धीमी मौत .


जो बन जाते हैं आदत के गुलाम 
चलते रहते हैं हर रोज़ 
उन्हीं पगडंडियों पर 
बदलती नहीं जिनकी कभी रफ़्तार 
जो अपने कपड़ों के रंग बदलने 
का जोखिम नहीं उठाते 
और बात नहीं करते अनजान लोगों से 
वे मरते हैं धीमी मौत .

जो रहते हैं दूर आवेगों से 
भाती है जिन्हें स्याही , उजाले से ज्यादा 
जिनका " मैं " बेदखल कर देता है 
उन भावनाओं को ,
जो चमक भरती हैं तुम्हारी आँखों में 
उबासियों को मुस्कान में बदल देती हैं 
गलतियों और दुखों से उबारती हैं ह्रदय को 
वे मरते हैं धीमी मौत .

जो उलट पुलट नहीं देते सब कुछ 
जब काम हो जाये बोझल और उबाऊ 
किसी सपने के पीछे भागने की खातिर 
चल नहीं पड़ते अनजान राहों पर 
जो ज़िन्दगी में कभी एक बार भी 
समझदारी भरी सलाह से बच कर भागते नहीं 
वे मरते हैं धीमी मौत .

जो निकलते नहीं यात्राओं पर 
जो पढ़ते नहीं , नहीं सुनते संगीत 
ढूंढ नहीं पाते अपने भीतर की लय 
वे मरते हैं धीमी मौत .

जो ख़त्म कर डालते हैं खुद अपने प्रेम को 
थामते नहीं मदद के लिये बढे हाथ 
जिनके दिन बीतते हैं अपनी बदकिस्मती -
या कभी न रुकने वाली बारिशों की शिकायतों में 
वे मरते हैं धीमी मौत .

जो कोई परियोजना शुरू करने से पहले ही 
छोड़ जाते हैं , अपरिचित विषयों के बारे में 
पूछते नहीं सवाल , और चुप रहते हैं 
उन चीज़ों के बारे में पूछने पर 
जिन्हें वे जानते हैं 
वे मरते हैं धीमी मौत .

किश्तों में मरते चले जाने से बचना है 
तो याद रखना होगा हमेशा 
कि जिंदा रहने के लिए -
काफी नहीं बस सांस लेते रहना  
कि एक प्रज्ज्वल धैर्य ले जायेगा हमें 
एक ज्वाज्वल्यमान सुख की पगडण्डी की ओर .
                
                    - पाब्लो नेरुदा .

          प्रस्तोता - दिनेश द्विवेदी .   

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