बड़े बड़े रास्तों की चमक
तेज रौशनी और गाड़ियों का शोर
मशीन से चलते मानव वृन्द
मै चुन लेती हूँ स्वभाव के अनुरूप
एक अपनेपन से भीगी छोटी पगडण्डी ...
जहाँ पीली सी धूल
मेरे पाँव पखारती है ...
नन्ही नन्ही वनस्पतियाँ
मेरे पथ बुहारती हैं ...
कोई भूला हुआ गीत
मेरे साथ गुनगुनाती है .
अल्हड सी राहें .
बेतरतीब सी दिखती हैं ...
पर हर गुजरी यादों को
कितना संजो कर रखती हैं .
पहले राहगीर से लेकर ,
आज तक चले
सारे क़दमों का हिसाब ले
उस बड़ी चौड़ी पक्की सड़क के समानांतर
धीरे धीरे आगे सरकती है .
- राजलक्ष्मी शर्मा .
- राजलक्ष्मी शर्मा .
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