मंगलवार, 4 सितंबर 2012

पारे की तरह


तुम्हारे साथ यात्रा करने पर 
छूटी वासना की पगडण्डी 
समझा मैंने 
समझाया तुमने 
सप्तपदी की तरह सात बरस 
मीलों फैले रेगिस्तान में 
जाना मैंने तुमसे 
प्रेम की गर्म रेत में भुनो
प्रेम के असीम तापमान 
में , पारे की तरह बढ़ो 
देह के माया सरोवर से 
तब तोड़ पाओगे 
" प्रेम कमल ".

          - दिनेश द्विवेदी . 

(  कविता संग्रह 'पारे की तरह' से )

  

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