अपने दीपक तुम आप बनो , संगी !
अभिलाषाओं का अंत नहीं ,
अभिमंत्रों की आवाज़ नहीं ,
तृष्णाओं के तट का , तल का -
आरम्भ नहीं , अंदाज़ नहीं !
अपने दर्पण तुम आप बनो , संगी !
गुण ही खुद गुण - गायक हो जाएगा।
अपने दीपक तुम आप बनो, संगी !
तम ही खुद तम - तारक हो जायेगा।
आशाओं का आधार नहीं ,
विश्वासों का विस्तार नहीं ,
सपनों की साधों का , स्वर का -
संसार नहीं , संचार नहीं।
अपना सपना तुम आप बनो , संगी !
सुख ही खुद सुख - साधक हो जाएगा।
अपने दीपक तुम आप बनो, संगी !
तम ही खुद तम - तारक हो जायेगा।
दुनिया बहुरंगी है , लेकिन -
रस - रंग नहीं , ढब - ढंग नहीं ,
अपनों की अपनी नगरी में
अपना भी अपने संग नहीं।
अपने संगी तुम आप बनो , संगी !
दुःख ही खुद दुःख - दाहक हो जाएगा।
- विपिन जोशी .
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