बुधवार, 12 दिसंबर 2012

यों ही .


सुबह की पहली किरन से 
रात की आखिरी झपक तक 
तुम चलते रहे 
मैं चलती रही ...
ज़िन्दगी यों ही गुज़रती गयी .
चलती गयी .

कल की किलकारी ,
आज की मारामारी ,
कल की रह्गुजारी ...
तुम चलते रहोगे ,
मैं चलती रहूंगी ,
चलती रहेगी यों ही ज़िन्दगी भी .

दो पल कहीं तुम मिल गए तो 
मुस्कुरा लेंगे ,
दो कदम साथ चल भी लेंगे ,
फिर अपनी धुन में तुम ...
अपनी गुन-धुन में मैं .

- अनुराधा ठाकुर .


1 टिप्पणी:

Kailash Sharma ने कहा…

दो पल कहीं तुम मिल गए तो
मुस्कुरा लेंगे ,
दो कदम साथ चल भी लेंगे ,
फिर अपनी धुन में तुम ...
अपनी गुन-धुन में मैं .

...बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...

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