सुबह की पहली किरन से
रात की आखिरी झपक तक
तुम चलते रहे
मैं चलती रही ...
ज़िन्दगी यों ही गुज़रती गयी .
चलती गयी .
कल की किलकारी ,
आज की मारामारी ,
कल की रह्गुजारी ...
तुम चलते रहोगे ,
मैं चलती रहूंगी ,
चलती रहेगी यों ही ज़िन्दगी भी .
दो पल कहीं तुम मिल गए तो
मुस्कुरा लेंगे ,
दो कदम साथ चल भी लेंगे ,
फिर अपनी धुन में तुम ...
अपनी गुन-धुन में मैं .
- अनुराधा ठाकुर .
1 टिप्पणी:
दो पल कहीं तुम मिल गए तो
मुस्कुरा लेंगे ,
दो कदम साथ चल भी लेंगे ,
फिर अपनी धुन में तुम ...
अपनी गुन-धुन में मैं .
...बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...
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