बुधवार, 12 दिसंबर 2012

हिचकी


कुछ नामो को बार बार ले
एक नाम पे अटक गयी 
हिचकी याद के उस पन्ने पे 
मुहर लगा के पलट गयी.

पन्ना जैसे कांच का टुकड़ा
पारदर्शिता की शर्तो पर
खरा खरा सा...
पन्ना जैसे सीप का मोती
बंद कवच के अंदर भी
उजला उजला सा.
पन्ना पारे सा भारी
ताप से उठता गिरता
धवल द्रवित सा...
पन्ना हल्का.. हवा मे
उडती हुयी तितली सा.....
पन्ने पर रंग बिरंगी
लिखी हुयी इबारत..
पन्ना जैसे नेह से उसके
भरा भरा सा...

उस पन्ने पे..
जिसपे आके अटकी हिचकी
उस पन्ने को पढ़ के
मुझको अर्थ बता दे..
उस पन्ने पे लिखा क्या है
ये समझा दे...
ऐसे एक अनुवादक की
मुझ को तलाश है...

- प्रीति .






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