आज फिर शुरू हुआ जीवन .
आज मैंने एक छोटी सी ,सरल सी कविता पढ़ी ,
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा ,
आज एक छोटी सी बच्ची किलक मेरे कंधे चढ़ी .
आज मैंने आदि से अंत तक एक पूरा गान किया .
आज फिर जीवन शुरू हुआ .
सोमवार, 14 जनवरी 2013
सरगम .
जो दिखता है, वो होता क्यूँ नहीं है ,
सोचा तो हर तस्वीर का चेहरा बदल गया .
सरगम में आज आप के लिए देखने और सोचने के फर्क को बहुत गहराई से बयां करती जावेद अख्तर जी की लिखी ये खूबसूरत नज़्म .
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