सोमवार, 14 जनवरी 2013

सोचते हैं .

तीज पूजी
अहोई आठे
चौथ पूजी
छठ पूजी
मजबूत कलियों को पकड़
रक्षा का सूत्र बाँधा
तिलक किया
लम्बी उम्र की कामना में
कभी बरगद
तो कभी पीपल
के फेरे लिए
मांग मांगी
कोख मांगी 
पुत्र और भरतार माँगा
ताप माँगा
ओज माँगा
युद्ध में
रण में
विजय में
तेज माँगा !
खुद जली
ब्रह्माण्ड सारा
राख कर डाला .

सोचते हैं
हम कहा पर थे सही
और हमारी
कहाँ पर हैं
गलतियां ...
अब हमें ये
जीर्ण शीर्ण
विदीर्ण
तस्वीर बदलनी होगी
थाम कर
नाज़ुक कलाई को
बाँध दो अब
सूत्र रक्षा के नए 
गढ़ेंगे हम
व्रत नए
अनुष्ठान नए
हंसी माँगे
ख़ुशी माँगे
भाव माँगें
दया माँगें
प्रेम माँगें
सरलता की
तरलता की
धैर्य की प्रतिमूर्ति-
बेटियां माँगें दुआ में .

देखना फिर एक दिन
तस्वीर का रुख बदल जाएगा 
-मृदुला
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