शुक्रवार, 10 मई 2013

बेसन की सौंधी रोटी पर


बेसन की सौंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ

बांस की खुररी खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई, आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ .

चिड़ियों की चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी जैसी माँ

बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ .

बाँट के अपना चेहरा माथा
आँखें जाने कहाँ गयी
फटे पुराने एक एल्बम में
चंचल लड़की जैसी माँ .

- निदा फाजली .

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