आज फिर शुरू हुआ जीवन . आज मैंने एक छोटी सी ,सरल सी कविता पढ़ी , आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा , आज एक छोटी सी बच्ची किलक मेरे कंधे चढ़ी . आज मैंने आदि से अंत तक एक पूरा गान किया . आज फिर जीवन शुरू हुआ .
शुक्रवार, 10 मई 2013
बेसन की सौंधी रोटी पर
बेसन की सौंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ
बांस की खुररी खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई, आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ .
चिड़ियों की चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी जैसी माँ
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ .
बाँट के अपना चेहरा माथा
आँखें जाने कहाँ गयी
फटे पुराने एक एल्बम में
चंचल लड़की जैसी माँ .
- निदा फाजली .
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