आज फिर शुरू हुआ जीवन .
आज मैंने एक छोटी सी ,सरल सी कविता पढ़ी ,
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा ,
आज एक छोटी सी बच्ची किलक मेरे कंधे चढ़ी .
आज मैंने आदि से अंत तक एक पूरा गान किया .
आज फिर जीवन शुरू हुआ .
रविवार, 12 मई 2013
ज्योति कलश छलके .
घास पे खेलता एक बच्चा,
पास माँ मुस्कुराती है,
मुझको हैरत है क्यों दुनिया,
काबा और सोमनाथ जाती है .
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