आज फिर शुरू हुआ जीवन . आज मैंने एक छोटी सी ,सरल सी कविता पढ़ी , आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा , आज एक छोटी सी बच्ची किलक मेरे कंधे चढ़ी . आज मैंने आदि से अंत तक एक पूरा गान किया . आज फिर जीवन शुरू हुआ .
रविवार, 12 मई 2013
अशआर
ऐ अँधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया .
मैं ने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना .
किसी के हिस्से में घर आया, किसी के हिस्से दुकान आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई .
लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती .
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है .
अभी जिंदा है मेरी माँ मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ , दुआ भी साथ चलती है .
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है .
मेरी ख्वाहिश है मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं
माँ से इस तरह से लिपटूं कि बच्चा हो जाऊं .
मुनव्वर माँ के आगे यों कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती .
- मुनव्वर राना .
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