रविवार, 12 मई 2013

अशआर


ऐ अँधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया .

मैं ने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना .

किसी के हिस्से में घर आया, किसी के हिस्से दुकान आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई .

लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती .

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है .

अभी जिंदा है मेरी माँ मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ , दुआ भी साथ चलती है .

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है .

मेरी ख्वाहिश है मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं
माँ से इस तरह से लिपटूं कि बच्चा हो जाऊं .

मुनव्वर माँ के आगे यों कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती .

- मुनव्वर राना .

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