शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

आशावाद

हम सुन्दर दिन देखेंगे, बच्चो
उजली धूप वाले दिन  …
हम अपनी द्रुतगामी नावों को खुले समुद्र में ले जायेंगे, बच्चो
हम उन्हें दौड़ाएंगे चमकीले, नीले विस्तृत सागर में  …
कल्पना करो पूरी गति से जाने की
वह मोटर का घूमना !
वह मोटर का गुर्राना !

आह ! बच्चो कौन बता सकता है
कितना अद्भुत होता है
सौ मील की गति को चूम सकना !

आज के दिन की सच्चाई है
हम रोशनी से नहाई सड़कों पर
सजी दूकानों को निहारते हैं
जैसे कोई परीकथा सुन रहे हों
ये कांच की दीवारों वाली
सतहत्तर मंज़िला दुकानें।
सच्चाई यह है
जब हम चिल्ला कर जवाब मांगते हैं
हमारे लिए काली किताब खुल जाती है !
चमड़े की पेटियों से हमारे हाथ बांध दिए जाते हैं !

यह सच है हमारे खाने की मेज़ पर
हफ्ते में एक दिन गोश्त तो है
मगर हमारे बच्चे काम से घर लौटते हैं
विवर्ण कंकालों की तरह  …

यह आज की सचाई है
लेकिन मुझ पर यकीन करो
हम अच्छे दिन देखेंगे बच्चो
देखेंगे उजली धूप वाले दिन
अपनी द्रुतगामी नौकाओं को दौड़ाएंगे खुले समुद्र में  
हम उन्हें दौड़ाएंगे विस्तृत, चमकीले नीले सागर में।

- नाज़िम हिकमत  .
( तुर्की कवि )
अनुवाद - शेखर जोशी 

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